तोहफ़ा … !!
फ़ुरसत ना , उनको जफ़ा से , ना हमको वफ़ा मिली ,
जब भी , मिली ये ज़िन्दगी , थोड़ी सी ख़फ़ा मिली !
उसी ने , रक़ीबों को चाहा , जिसको भी चाहा कभी ,
ये चोट , गहरी जहाँ में , है कितनी दफ़ा मिली !
अकेले में , जब भी झुकाई नज़र , तुझको पाया वहीं ,
अपनी , तनहाई भी हमको , खुद से बेवफ़ा मिली !
ख़लीफ़ा हैं हम , सोचा हमने यहाँ , कौन लूटे हमें ,
दुनिया मगर , इश्क़ की हमको , सबसे ख़लीफ़ा मिली !
हमने माँगी थी , ज़िन्दगी में साँसें , तुम्हारे लिये ,
रूसवाई की मौत , मुझको मगर , तेरा तोहफ़ा मिली !
रवि ; दिल्ली : १ सितम्बर २०१३
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