इश्क़ का ये सिलसिला , अक्सर ग़रीब है ,
है दूर जो होता वही , लगता क़रीब है !

क्यूँ हुआ है इश्क़ और , किसी से क्यूँ हुआ ,
ना मुझको मिलता कोई , इसका अदीब है !

ये चेहरा है नज़र है , या कोई सुरूर है ,
क्यूँ पहली नज़र में कोई , लगता हबीब है !

टूटे जो कभी ख़्वाब यहाँ , इश्क़ का हुज़ूर ,
फिर हर कोई लगता यहाँ , उसको रक़ीब है !

होते हैं फ़ना इश्क़ में सब , दुनिया में यहाँ ,
बिरलों को मिलता कोई , फिर से नक़ीब है !

मिलता यहाँ जो ज़िन्दगी में , हमको हमसफ़र ,
ना बस की है ये बात बस , अपना नसीब है !

रवि ; दिल्ली : २६ अगस्त २०१३

( अदीब : knowledgeable ; हबीब : beloved ; रक़ीब : watcher , Adversary ; नक़ीब : reunionist )