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जफ़ा में तेरी , मेरे प्यार का , क़सूर न था ,
प्यार का तेरा , निभाना मगर , ज़रूर न था !

मैं तो करता रहा , जो दिल ने , चाहा मुझसे ,
पर तेरा दिल , तेरे प्यार से , मजबूर न था !

मेरी आँखों में , थी परछाईं , नज़र की तेरी ,
पर तेरी आँखों में , वो प्यार का , सुरूर न था !

तूने शिकवा किया , और जान से , माना मैने ,
चूँकि मेरा ख़ुदा , किसी बात पे , मगरूर न था !

तूने रुसवा किया , मेरे प्यार को , किसी की ख़ातिर ,
जबकि इसके लिये , तेरा चलन , मशहूर न था !

रवि : दिल्ली ; ३० अगस्त २०१३