संचार …. !!
शाश्वत
सत्य
स्वप्न
संसार !
करूणा
प्रेम
हृदय
संचार !!
रवि ; दिल्ली : ६ फ़रवरी २०१४
शाश्वत
सत्य
स्वप्न
संसार !
करूणा
प्रेम
हृदय
संचार !!
रवि ; दिल्ली : ६ फ़रवरी २०१४
नित्य प्रति नव हर्ष हो !
हर्ष प्रिय नव वर्ष हो !!
प्रभु समर्पित चेतना हो ,
जग समर्पित वेदना हो ,
प्रियजन से संवेदना हो ,
जीवन लक्ष्य भेदना हो !
नित्य प्रति नव हर्ष हो !
हर्ष प्रिय नव वर्ष हो !!
उमंगित जीवन आशा हो ,
जीवन दर्शन जिज्ञासा हो ,
सुकल्याण अभिलाषा हो ,
सर्वधर्म प्रेम परिभाषा हो !
नित्य प्रति नव हर्ष हो !
हर्ष प्रिय नव वर्ष हो !!
रवि ; दिल्ली : १ जनवरी २०१४
क्षण
भंगुर
संसार !
जीव
विषय
संचार !
तन
स्थूल
प्रकार !
रूप
क्षणिक
आकार !
स्नेह
भाव
विस्तार !
क्रोध
आवेश
संघार !
श्रध्दा
प्रकट
आचार !
चतुर
मस्तिष्क
विचार !
द्वेष
संबंध
प्रहार !
मूल्य
जीवन
व्यापार !
भक्ति
आस्था
आधार !
विनय
बुध्दि
अनुसार !
प्रेम
हृदय
आभार !
आत्मा
अमर
अपार !!
रवि ; दिल्ली : ३० नवम्बर २०१३
दीप पर्व
प्रकाश पर्व
विजय पर्व
अभिलाष पर्व !
प्रेम पर्व
उपहार पर्व
लक्ष्मी पर्व
व्यवहार पर्व !
धन पर्व
मित्र पर्व
गणेश पर्व
पवित्र पर्व !
राम पर्व
जगत पर्व
भरत पर्व
आवभगत पर्व !
लोक पर्व
सर्वनिष्ठ पर्व
जन पर्व
धर्मनिष्ठ पर्व !
ऋंगार पर्व
उद्गार पर्व
आचार पर्व
विचार पर्व !
न्याय पर्व
वीर पर्व
तीर पर्व
धीर पर्व !
ईश्वर पर्व
जगदीश्वर पर्व
अधीश्वर पर्व
परमेश्वर पर्व !
दिव्य पर्व
सुविचार पर्व
मर्यादा पर्व
दरबार पर्व
उन्माद पर्व
हर्षोन्माद पर्व
प्रसाद पर्व
आशीर्वाद पर्व !
हर्ष पर्व
सहर्ष पर्व
उत्कर्ष पर्व
परमोत्कर्ष पर्व !
ह्रदय पर्व
उल्लास पर्व
सह्रदय पर्व
सर्वोल्लास पर्व !
धर्मार्थ पर्व
पुरुषार्थ पर्व
दिव्यार्थ पर्व
ह्रदयार्थ पर्व !
उत्तम पर्व
उत्तमोत्तम पर्व
सर्वोत्तम पर्व
पुरुषोत्तम पर्व !
रवि ; दिल्ली : ३ नवम्बर २०१३
उठना है तो आँधी ना बन ,
तू आँखों में चुभता जायेगा ,
गहरी जड़ों का तू वृक्ष बन ,
कृतज्ञ हर कोई हो जायेगा !
तू ग़र भूला कभी ज़मीन को ,
तो मुश्किल से ख़ैर मनायेगा ,
किसी भी रोज़ सूखे पत्ते सा ,
तू हवा में कहीं उड़ जायेगा !
ज़मीन देगी तुझे पोषण सदा ,
तू सदा ही बढ़ता जायेगा ,
हवा का रूख़ कैसा भी हो ,
तू ऊँचा ही उठता जायेगा !
ग़र आया कभी तूफ़ान तो ,
उसको भी तू सह जायेगा ,
ग़र तोड़ दे वो तेरी डालियाँ ,
तू कोपलें फिर से उगायेगा !
ना चली हवा तो होगा शांत ,
और हवा में तू मुसकायेगा ,
चिड़ियों की बोली बोलेगा ,
तू मिट्टी का क़र्ज़़ चुकायेगा !
तेरे नीचे जब भी बैठे कोई ,
गहरी छाँव सदा ही पायेगा ,
तेरा मानेंगे सब परोपकार ,
तू पीढ़ियों में पूजा जायेगा !
न चाहेगा किसी से कुछ ,
तू संतोष में ही समायेगा ,
जिस हवा मे लेगा सांस ,
उसको भी तू लौटायेगा !
बस तू सोच ले तू कौन है ,
फिर ना खुद को सतायेगा ,
तू लेगा जो भी ज़िन्दगी से ,
आजन्म उसको लुटायेगा !
तेरी नज़र में सब होंगे एक ,
तू भेद ना कोई जतायेगा ,
फल पुष्प हों या डालियाँ ,
दूसरों के काम ही आयेगा !
जब जायेगा इस जन्म से ,
तो सबको तू याद आयेगा ,
ना होगा तेरा वजूद कहीं ,
पर ख़ुशबू तू छोड़ जायेगा !!
रवि ; दिल्ली : १८ सितम्बर २०१३
:: Mixed use of Hindi and Urdu words is intentional .
मैं मृत हूँ या मैं जीवित हूँ ,
इस बात का कैसे ज्ञान करूँ ?
जब तक ना हो जाये ये निश्चित ,
मैं क्यूँ जीवन पर अभिमान करूँ ?
मृत की परिभाषा क्या है ,
जीवन की अभिलाषा क्या है ,
संवादों के इस घेरे में ,
मैं क्यूँ प्रश्नों से अनुमान करूँ ?
जीव की व्याख्या चेतन है ,
मृत का संयोग अचेतन है ,
जीव चेतना के दर्शन का ,
मैं क्यूं ना वृहद सम्मान करूँ ?
क्या पूर्ण चेतना है मुझ में ,
या मैं अर्धचेतना वासी हूँ ,
जब तक ना जानूँ अन्तर इसका ,
मैं क्यूँ संशय से मरिमाण करूँ ?
यदि तन मेरा बस चेतन है ,
पर मन में भरा अचेतन है ,
तो क्यूँ कहता मैं चेतन स्वयं को ,
मैं क्यूँ ना सत्य का मान करूँ ?
सारी विधा करता मैं तन पर ,
है रिक्त चेतना रहती मन पर ,
अचेतन मन के तन का स्वामी ,
मैं क्यूँ जीवित होने का गान करूँ ?
मैं अर्ध मृत या अर्ध जीवित ,
या चेतना का मैं त्रिशंकु हूँ ,
यदि तन मन का ना दीप जले ,
मैं क्यूँ प्राणों का आह्वान करूँ ?
अब निद्रा से मुझको जगना है ,
अनिद्रा में चेतन भरना है ,
अपने तन मन दोनों ही में ,
मैं क्यूँ ना नवचेतना निर्माण करूँ ?
जब तन मन हो मेरा चेतन ,
और मैं पूर्ण चेतना का स्वामी ,
तब फिर पूर्ण चैतन्य होकर ही ,
मैं क्यूँ ना जीवन से अवसान करूँ ?
रवि ; दिल्ली : ११ सितम्बर २०१३
जन्म
कृष्ण
आभा
दिवीत !
बाल्य
कृष्ण
मेध
प्रमीत !!
ग्वाले
कृष्ण
सखा
रिशीत !
माखन
कृष्ण
मुख
ससमीत !!
शेषनाग
कृष्ण
क्रीड़ा
किरीत !
बाँसुरी
कृष्ण
मधुर
संगीत !!
यशोदा
कृष्ण
ममता
गीत !
राधा
कृष्ण
प्रेम
सुमीत !!
गोपी
कृष्ण
अनुपम
प्रीत !
रास
कृष्ण
लीला
अमीत !!
गोवर्धन
कृष्ण
रक्षक
संजीत !
कंस
कृष्ण
वध
सुजीत !!
शिशुपाल
कृष्ण
मृत्यु
सभीत !
द्रौपदी
कृष्ण
आस्था
पुनीत !!
अर्जुन
कृष्ण
सारथी
नीत !
सुदामा
कृष्ण
मित्र
गुनीत !!
गीता
कृष्ण
दर्शन
रीत !
सुदर्शन
कृष्ण
त्रिलोक
अजीत !!
छवि
कृष्ण
मनोहर
अविजीत !
मीरा
कृष्ण
अनुराग
अभिजीत !!
संसार
कृष्ण
श्रध्दा
विनीत !
जीवन
कृष्ण
शोभित
अभिनीत !!
मानव
कृष्ण
भक्ति
सुनीत !
हृदय
कृष्ण
आनन्द
अनीत !!
रवि ; दिल्ली : २८ अगस्त २०१३
स्वतन्त्र राष्ट्र
गणतंत्र राष्ट्र
फिर भी क्यूँ परतन्त्र राष्ट्र !
परतन्त्र बढ़ते इस भ्रष्टाचार से
प्रतीक्षित न्याय की चीत्कार से
प्रति दिन आतंकवादी प्रहार से
राजनीतिक अपराधियों की भरमार से !
पूर्ण राष्ट्र
संपूर्ण राष्ट्र
फिर भी क्यूँ अपूर्ण राष्ट्र !
अपूर्ण भूख के कगार से
ग़रीबी की मार से
महँगाई के भार से
रोज़ बढ़ते बेरोज़गार से !
ज्ञानी राष्ट्र
सुज्ञानी राष्ट्र
फिर भी क्यूँ अज्ञानी राष्ट्र !
अज्ञानी शिक्षा के व्यापार से
समाज में गिरते शिष्टाचार से
अर्धमृत संस्कारों की भरमार से
बच्चों पर कामकाज की मार से !
स्वाधीन राष्ट्र
निश्चयाधीन राष्ट्र
फिर भी क्यूँ पराधीन राष्ट्र !
पराधीन विश्वव्यापार से
चीनी वस्तुओं की भरमार से
आयात के बढ़ते कारोबार से
अस्वावलंबी नीतियों की सरकार से !
सक्षम राष्ट्र
सुसक्षम राष्ट्र
फिर भी क्यूँ असक्षम राष्ट्र !
असक्षम अनुशासनहीन व्यवहार से
महिलाओं के बलात्कार से
भ्रूण हत्या के सरोकार से
किंकर्तव्यविमूढ़ सरकार से !
अब तक बहुत प्रतीक्षा सही
संसार की राष्ट्र समीक्षा सही
अब उठकर धर्म निभाना है
सब को अब देश बनाना है !
आओ बनाये सशक्त राष्ट्र
अनुशासन से आसक्त राष्ट्र !
उन्नति से परिपूर्ण राष्ट्र
सामाजिक न्याय से पूर्ण राष्ट्र !
अहिंसा का परिचारक राष्ट्र
शत्रु का नाशकारक राष्ट्र !
न्याय से विख्यात राष्ट्र
शिक्षा से प्रख्यात राष्ट्र !
महिलाओं का सुरक्षित राष्ट्र
प्रकृति का आरक्षित राष्ट्र !
मानवता में लीन राष्ट्र
आतंक से विहीन राष्ट्र !
राजनीति धर्म का मूल्य राष्ट्र
जन नीतियों का सुमूल्य राष्ट्र !
हो अब नव निर्माण राष्ट्र
जनहित से कल्याण राष्ट्र
जन जन की हो आन राष्ट्र
हो जीवन का सम्मान राष्ट्र !
ले शपथ बढायें राष्ट्र मान !
मिलकर हम गायें राष्ट्र गान !!
रवि ; दिल्ली : १६ अगस्त २०१३
उस पत्ते की
कोख से निकलकर
हवा का वो झोंका
ठिठकता है
रूकता है
सम्भलता है
फिर
बहता है
कभी होशवास सा
तो
कभी मदहोश सा
कभी अहसास सा
तो
कभी बदहवास सा
कभी देवता सा
तो
कभी गुनहगार सा
कभी सितमग़र सा
तो
कभी शर्मसार सा
कभी धड़कन सा
तो
कभी साँस सा
कभी आँसू सा
तो
कभी मुस्कान सा
कभी सिसकी सा
तो
कभी किलकारी सा
कभी झिझक सा
तो
कभी बेहिचक सा
बहता है
और छूता है
उन तमाम हसरतों को
जो रोज़
लोगों की शक्ल में
सड़कों पे निकलती हैं
या फिर
बैठ कर बरामदे में
ख़ुद ही सँवरती हैं
या फिर
तनहाई की बाहों में
ख़ुद से ही सम्भलती हैं
हँसती हैं रोती हैं
ख़ुद में ही खोती हैं
ख़रीदती हैं बिकती हैं
घुटती हैं सिमटती हैं
खनकती हैं पिघलती हैं
नाचती हैं गाती हैं
संग अपने ये नचाती हैं
रोज़ रात को
थककर सोती हैं
पर सुबह
फिर से मचलती हैं
खुलती हैं
बन्धती हैं
बनती हैं
बिगड़ती हैं
मरती हैं
दफ़्न होती हैं
पर
मरके भी
फिर से पनपती हैं
और लोगों को
अपनी आग़ोश में लेकर
एक बार फिर से
चलती हैं
भागती हैं
मचलती हैं
बहकती हैं
ये हवा का झोंका
छूकर हसरतों को
अहसास दिलाता है
उनकी ज़िन्दगी का
जो चलती है
हर रोज़ यहाँ
बिना रूके
बिना थके
अपनी हसरतों के लिये !
ज़िन्दा हैं हसरतें
क्योंकि
ज़िन्दा है आदमी
और
ज़िन्दा है आदमी
क्योंकि
ज़िन्दा हैं हसरतें !!
रवि ; मुम्बई : २ अगस्त २०१३
ये देखो होली आई रे !
रंगों की बरखा लाई रे !!
ये देखो होली आई रे !
शीत से पीछा छूट गया
पतझड़ का मौसम बीत गया
नये फूल हैं , नयी कोपलें
नयी उमंगें , नयी तरंगें
प्रकृति में हरियाली छाई रे !!
ये देखो होली आई रे !
आज गगन है नीला पीला
धरा का रूप हो रहा सजीला
रंग , अबीर , गुलाल उड़ रहा
हर तरफ प्यार का रंग दिख रहा
सबमें प्यार बढाने आई रे !!
ये देखो होली आई रे !
गालों का रंग हो रहा गुलाबी
होठों पर है लाली ही लाली
दीवाने दिल मचल उठे
चोली के बंधन कसक उठे
आँखों में मस्ती छाई रे !!
ये देखो होली आई रे !
रवि ; लखनऊ : मार्च 1981
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