कच्चे पक्के धागे !
इन रिश्तों को बाँधते हैं ये , मासूमियत के धागे ,
दिलों को साथ रखते हैं ये , अपनायत के धागे ,
इन्हीं धागों से बन्धती हैं , हमारी ख़ुशियाँ सारी ,
कभी कच्चे कभी पक्के ये , इन्सानियत के धागे !
रवि ; दिल्ली : २१ अगस्त २०१३
इन रिश्तों को बाँधते हैं ये , मासूमियत के धागे ,
दिलों को साथ रखते हैं ये , अपनायत के धागे ,
इन्हीं धागों से बन्धती हैं , हमारी ख़ुशियाँ सारी ,
कभी कच्चे कभी पक्के ये , इन्सानियत के धागे !
रवि ; दिल्ली : २१ अगस्त २०१३
यहाँ कुछ भी दे सकता हूँ मैं , किसी को कभी भी ,
बस तेरी यादों की जागीर को , है रखा सम्भाल कर !
रवि ; दिल्ली : २१ अगस्त २०१३
कलाई पे इस धागे की , बात ही अलग है ,
ये भाई को बहन की , सौग़ात ही अलग है ,
बढ़ते हैं रिश्ते बस , परवाह की ज़मीन पर ,
वरना तो सारे रिश्तों की ,जात ही अलग है !
रवि ; दिल्ली : २० अगस्त २०१३
जिसका हो जितना ही धन , वो उतना बड़ा धनवान है ,
बनाया जिसने भी ये क़ायदा , वो सबसे बड़ा नादान है ,
जो बाँट सके अपनों ग़ैरों में , सबकी ख़ुशी और दर्द में ,
वही इन्सानों में इन्सान है , और बस वो ही धनवान है !
रवि ; दिल्ली : ११ अगस्त २०१३
मेरे महबूब , ज़ुल्फ़ों की , मुझको हवा दे दे ,
मेरे इश्क़ की , मुझको तू , कोई दवा दे दे !
रवि ; दिल्ली : ७ अगस्त २०१३
दोनों एक जैसे ही हैं ,
लिखते भी वैसे ही हैं !
रवि ; दिल्ली : ६ जुलाई २०१३
दिल मेरा करता है , कभी तुझको मैं सजाऊँ ,
कभी बिंदिया कभी , काजल तेरा हो जाऊँ !
रवि ; दिल्ली : ६ अगस्त २०१३
मेरे महबूब की मेहंदी का नज़ारा क्या है ,
काजल का इन आँखो में इशारा क्या है !
रवि ; दिल्ली : ५ अगस्त २०१३
ज़िन्दगी की दौड़ में , शख़्स वो गुज़र गया ,
बेख़ौफ़ वो ज़िन्दा रहा , डर गया तो मर गया !
********
आदमी का जीना मरना , ज़िन्दगी का खेल है ,
ग़र ज़िन्दा है तो पास है , मर गया तो फ़ेल है !
*********
आदमी इस दुनिया में , अपनी कहानी कर गया ,
मौत पे उसकी अगर , आँखों में पानी भर गया !
*********
रवि ; दिल्ली : ५ अगस्त २०१३
मेरे मौला तू सबकी दुआओं का सिला दे दे ,
सारी दुनिया को दोस्ती का सिलसिला दे दे !
रवि ; दिल्ली : ४ अगस्त २०१३
Recent Comments