ख़ामोशियाँ … !
अब तो ख़ामोशियाँ गुनगुनाने लगी हैं ,
खुद ब ख़ुद चाहतें मुस्कुराने लगी हैं ,
किसको बोलूं मैं किससे छिपाऊँ इसे ,
ख़ुशबूएं अब हवाओं में आने लगी है !
अब तो ख़ामोशियाँ गुनगुनाने लगी हैं ,
खुद ब ख़ुद चाहतें मुस्कुराने लगी हैं ,
किसको बोलूं मैं किससे छिपाऊँ इसे ,
ख़ुशबूएं अब हवाओं में आने लगी है !
उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ
वो अवसर था
पर दुष्कर था
कभी सरल पथ
कभी दुर्गम रथ
जीवन मरण का प्रश्न कभी
कभी जीवन प्रसंग का ज्ञान हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !
था क्षणिक उषा का क्षण
बहुत सरस था प्रात: कण
फिर सूर्य चढ़ा
और ताप बढ़़ा
हुई ओझल वो ओस बिन्दु
वाष्प बना आसक्ति सिन्धु
जीवन यथार्थ के दर्पण में
क्षण भंगुरता का परिमाण हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ !
फिर पवन चली और स्वप्न बढ़ा
महत्वकांक्षी मैं लिये पंख उड़ा
नीचे सिधुं और ऊपर नभ
नहीं बचा मैं बिन्दु भी अब
रहस्य खुला ब्रह्मांड विस्तार
हुआ प्राप्त अहम निस्तार
स्वस्तित्व सत्यहीन दिखा
और चूर्ण मेरा अभिमान हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !!
रात्रि पहर हुआ तम ताण्डव
कौरव सर्वत्र दिखें नहीं पांडव
किंकर्तव्यविमूढ़ क्या मैं करूँ
बनूँ अर्जुन या अभिमन्यु मरूँ
कृष्ण कभी तो मैं कर्ण बना
युद्ध स्वयं से प्रतिबार चुना
हुआ हृदय क्षत विक्षत जब
जीवन अस्तित्व शमशान हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !!
उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ
वो अवसर था
पर दुष्कर था
कभी सरल पथ
कभी दुर्गम रथ
जीवन मरण का प्रश्न कभी
कभी जीवन प्रसंग का ज्ञान हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !
था क्षणिक उषा का क्षण
बहुत सरस था प्रात: कण
फिर सूर्य चढ़ा
और ताप बढ़़ा
हुई ओझल वो ओस बिन्दु
वाष्प बना आसक्ति सिन्धु
जीवन यथार्थ के दर्पण में
क्षण भंगुरता का परिमाण हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !!
फिर पवन चली और स्वप्न बढ़ा
महत्वकांक्षी मैं लिये पंख उड़ा
नीचे सिधुं और ऊपर नभ
नहीं बचा मैं बिन्दु भी अब
रहस्य खुला ब्रह्मांड विस्तार
हुआ प्राप्त अहम निस्तार
स्वस्तित्व सत्यहीन दिखा
और चूर्ण मेरा अभिमान हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !!
उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ
वो अवसर था
पर दुष्कर था
कभी सरल पथ
कभी दुर्गम रथ
जीवन मरण का प्रश्न कभी
कभी जीवन प्रसंग का ज्ञान हुआ !
टूटा तारा , मेरी आँखों में , यूँ पिघला कैसे ,
फिर तेरा नाम , होठों से , यूँ निकला कैसे !
चाँदनी रात भर , होठों से , शरारत है करे ,
फिर मेरा चाँद , हथेली सें , यूँ फिसला कैसे !
मेरे दिल की तू , धड़कन में , हमेशा थी बसी ,
फिर मेरा दिल , तेरी याद में , यूँ मचला कैसे !
तुझको हाथों की , लकीरों में , बसाया मैने ,
फिर तेरा प्यार , उम्मीद से , यूँ बदला कैसे !
रोज़ आँखों में चुभें , लम्हे वो , जफ़ा के तेरे ,
फिर भुलाऊँ मैं , गया वक़्त , यूँ पिछला कैसे !
तुझको हाथों की लकीरों में बसाया मैने ,
फिर तेरा प्यार उम्मीद से यूँ बदला कैसे !
चाँदनी रात भर होठों से शरारत है करे ,
फिर मेरा चाँद हथेली सें यूँ फिसला कैसे !
आँखों में सपने हैं मेरी , माथे पे माँ गंगा है ,
दिल में वन्दे मातरम है , हाथों में तिरंगा है !
टूटा तारा , मेरी आँखों में यूँ , पिघला कैसे ,
फिर तेरा नाम , होठों से यूँ , निकला कैसे !
उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ
वो अवसर था
पर दुष्कर था
कभी सरल पथ
कभी दुर्गम रथ
जीवन मरण का प्रश्न कभी
कभी जीवन प्रसंग का ज्ञान हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !
था क्षणिक उषा का क्षण
बहुत सरस था प्रात: कण
फिर सूर्य चढ़ा
और ताप बढ़़ा
हुई ओझल वो ओस बिन्दु
वाष्प बना आसक्ति सिन्धु
जीवन यथार्थ के दर्पण में
क्षण भंगुरता का परिमाण हुआ !
उस युग का अब अवसान हुआ !!
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