नियत
सौंपा है हमीं ने उन्हें तख्तो ताज ,
और दी है हमीं ने उन्हें वो आवाज़ ,
पर नियत को उनकी बदल ना सके ,
जो नहीं आती बेईमानी से बाज़ |
रवि ; अहमदाबाद : १७ अगस्त २०११
सौंपा है हमीं ने उन्हें तख्तो ताज ,
और दी है हमीं ने उन्हें वो आवाज़ ,
पर नियत को उनकी बदल ना सके ,
जो नहीं आती बेईमानी से बाज़ |
रवि ; अहमदाबाद : १७ अगस्त २०११
झंडा अपने , वतन का हमेशा , हमें ऊँचा ही फहराना है ,
एक बार फिर से, इसे सोने की , चिड़िया हमको बनाना है !
वतन से अपने , हर वादे को , हमेशा हमको निभाना है ,
दूर हुए जो , एक दूजे से , सबको क़रीब अब लाना है !
क्या सही है , और क्या ग़लत है , ये सबको समझाना है ,
अछूते जो हैं , प्रगति से उनको , मुख्य धारा में लाना है !
गाँव शहर में , मरने से नवजात , बच्ची को हमको बचाना है ,
बेहतर नस्लों की , खातिर अब , माँओं को सारी पढ़ाना है !
भीख लेते , बच्चों को ना , देना कोई उलाहना है ,
एक एक को अब , खूब पढ़ाकर , सबको कामयाब बनाना है !
काम नहीं , होता कोई छोटा, मंत्र सबको सिखाना है ,
काम करो , हरेक मेहनत से, स्वाभिमान को अब जगाना है !
एक दूजे की , क़ौमें बने सब , ज़ज़बा ऐसा जगाना है ,
ना हिन्दू , मुस्लिम ना कोई , भारतीय सबको बनाना है !
पैसे के , भ्रष्टाचार के साथ , भ्रष्टाचार नियत का मिटाना है ,
ग़र ना मानें , सीधी बातों से , डंडे से उनको सिखाना है !
ना सोये अब , कोई भूखा , खाना सबको खिलाना है ,
महसूस हो , हिफाजत सबकी , अनुशासन को लाना है !
भ्रष्ट हो , या निकम्मा नेता, कुर्सी से उसको हटाना है ,
सब्र का , टूटा है बाँध अब , खुद राजनीति में आना है !
ना भूलें अंग्रेजी पर , माथे से , मातृभाषा लगाना है ,
संस्कारों का , शिक्षा से बढ़कर , महत्व अब समझाना है !
जो देखे , टेढ़ी आँखों से, सबक उसको सिखाना है ,
अपने वतन की , हिफाज़त में हमको , हंसते हुए मर जाना है !
प्यारे से , अपने भारत को , दुनिया से अच्छा बनाना है ,
वतन के एक एक , ज़र्रे को अपने , माथे से हमको लगाना है !
रवि ; गुड़गांव : १४ अगस्त २०११….
उन बीते लम्हों को मैं बचाता हूँ ,
सीने से उनको मैं लगाता हूँ ,
डूबता उतराता हूँ बस उनमें ही ,
जीने की उम्मीद में जिया जाता हूँ |
वोह उम्मीद ही है कि मरती नहीं ,
ज़िन्दगी की लहर कभी ठहरती नहीं ,
कैसे गिनूँ इन लहरों को मैं पास से ,
मैं तो ख़ुद उनमें बहता ही जाता हूँ |
बहती है ज़िन्दगी या बहता हूँ मैं ,
उठती हैं ये लहरें या उठता हूँ मैं ,
मैं उम्मीद से हूँ या उम्मीद मुझसे ,
बस इसी सोच में डूबता उतराता हूँ |
क्या चाहूँ पाना खुद को ज़िन्दगी से ,
या पाना चाहता हूँ उसको बंदगी से ,
मेरा ख़ुद का वज़ूद है या मैं हूँ उससे ,
इस के ज़बाब से हमेशा कतराता हूँ |
सब सोचता हूँ मैं और सब जानता हूँ ,
जीवन कि डोर मैं ख़ुद ही बाँधता हूँ ,
कभी मैं खींचता हूँ ज़िन्दगी कि डोर ,
कभी ज़िन्दगी की ओर खिंचा जाता हूँ |
उन बीते लम्हों को मैं बचाता हूँ ,
सीने से उनको मैं लगाता हूँ ,
डूबता उतराता हूँ बस उनमें ही ,
जीने की उम्मीद में जिया जाता हूँ ||
रवि ; अहमदाबाद : १३ जुलाई २०११
************************************************
Un beete lamhon ko main bachata hoon
Seene se unko main lagata hoon
Doobta utrata hoon bas unme hi
Jeene ki ummeed mein jiya jata hoon !
Wo ummeed hee hai ki marti nahin
Zindagi ki lahar kabhi thaharati nahin
Kaise ginun in lahron ko main paas se
Main to khud unmein bahata hee jaata hoon !
Bahti hai zindagi ya bahata hoon main
Uthati hain laharen ya uthata hoon main
Main ummeed se hoon ya ummeed mujhse
Bas isi soch mein doobta utrata hoon !
Kya chahun pana khud ko zindagi se
Ya paana chahata hoon usko bandagi se
khud mera vazood hai ya main hoon usase
Is ke jabab se hamesha hi qatarata hoon !
Sab sochata hoon main aur sab janta hoon
Jeevan ki dor ko main khud hi bandhta hoon
Kabhi main kheenchta hoon zindagi ki dor
To kabhi zindagi ki or khincha jata hoon !
Un beete lamhon ko main bachata hoon
Seene se unko main lagata hoon
Doobta utrata hoon bas unme hi
Jeene ki ummeed mein jiya jata hoon !
Ravi Sharma ; Ahmedabad : 13 July 2011
मेरी ज़िन्दगी की बात है ,
एक रात यहाँ से गुज़री है ,
बयां कभी जो हो ना सके ,
वो बात यहाँ से गुज़री है !
जिसको कभी देखा ही नहीं ,
वो नज़र यहाँ से गुज़री है ,
जिसको कभी जाना ही नहीं ,
वो सहर यहाँ से गुज़री है !
छुआ जिसने जिस्म को उसके ,
वो हवा यहाँ से गुज़री है ,
जो मैंने की थी उसके लिए ,
वो दुआ यहाँ से गुज़री है !
गुजरें हैं दिन हैं गुज़री रातें ,
सोच रहा हूँ वो सारी बातें ,
सपनों में देखी उसके लिए ,
वो सौग़ात यहाँ से गुज़री है !!
रवि ; अहमदाबाद : २ अगस्त २०११
Meri zindagi ki baat hai ,
Ek raat yahan se guzari hai ,
Bayan kabhi jo ho na sake ,
Wo baat yahan se guzari hai !
Jisko kabhi dekha hi nahin ,
Wo nazar yahan se guzari hai ,
Jisko maine jaana hi nahin ,
Wo sahar yahan se guzari hai !
Chhua jisne jism ko uske ,
Wo hawa yahan se guzari hai ,
Jo maine ki thi uske liye ,
Wo dua yahan se guzari hai !
Gujaren hain din hain gujari raaten ,
Soch raha hoon wo saari baaten ,
Sapanon mein dekhi uske liye ,
Wo saugaat yahan se guzari hai !!
Ravi ; Ahmedabad : 2 August 2011
कैसे इलज़ाम दूँ मैं जिंदगी में रौशनी को ,
अब तो परछाईं पर भी मेरा अख्तियार नहीं |
*****
मेरी परछाईं भी मुझसे खेलती है घट बढ़ के
और मैं यूँ ही हकीक़त में कहीं खोया हूँ !
*****
मैं कैसे कहूँ उनसे कि लिपटो मुझसे
जबकि मेरी परछाईं भी मुझसे दूर खड़ी होती है !
*******
परछाईं भी मेरी तो मौसम परस्त है
रौशनी हो ऊपर तो ही ये साथ निभाती है !
*******
अंधेरों में ना देगी साथ मेरी परछाईं भी ,
वो भी बस उजालों में साथ नज़र आती है !
*******
रवि ; अहमदाबाद : 23 जुलाई २०११
सौ सौ बार मिटाया उन्होंने मेरे मज़मून को ,
फिर भी लफ्ज़ मेरे हमेशा ही आबाद रहे !
कोशिश बार बार कीं उन्होंने मुझे झुकाने को ,
फिर भी इरादे मेरे हमेशा ही नाबाद रहे !
Sau sau baar mitaya unhone mere mazmoon ko ,
Phir bhi lafz mere hamesha hee aabaad rahe !
Koshish bar bar keen unhone mujhe jhukaane ko ,
Phir bhi iraade mere hamesha hi nabaad rahe !
Ravi ; Delhi : 17 July 2011
जिसे बेदिल पड़े गाना , वो गीत ना होगा ,
जिसे दर्द पड़े दिखाना , वो मीत ना होगा |
जिसे ज़ोर सा पड़े निभाना , वो यार ना होगा ,
जिसे बोझ सा पड़े उठाना , वो प्यार ना होगा |
जिसे सूखा पड़े बिताना , वो सावन ना होगा ,
जिसे सबसे पड़े छिपाना , वो पावन ना होगा |
जिसे आसान पड़े निभाना , वो ईमान ना होगा ,
जिसे दूसरा पड़े दिखाना , वो इंसान ना होगा |
जिसे याद पड़े दिलाना , वो इबादत ना होगी ,
जिसे सबको पड़े दिखाना , वो इनायत ना होगी |
जिसे रोज़ पड़े झुकाना , वो नज़र ना होगी ,
जिसे सुबह पड़े दिखाना , वो सहर ना होगी |
जिसे आसान पड़े भुलाना , वो इल्ज़ाम ना होगा ,
जिसे रोज़ पड़े बहलाना , वो इत्मीनान ना होगा |
जिसे दूसरों को पड़े बताना , वो फ़र्ज़ ना होगा ,
जिसे कभी ना पड़े चुकाना , वो क़र्ज़ ना होगा |
जिसे लोगों को पड़े भुलाना , वो जिंदगी ना होगी ,
जिसे रोज़ पड़े याद दिलाना , वो बंदगी ना होगी |
रवि ; अहमदाबाद : १२ जुलाई २०११
************************************************************
Jise bedil pade gaana wo geet na hoga
Jise dard pade dikhana wo meet na hoga !
Jise jor sa pade nibhana wo yaar na hoga
Jise bojh sa pade uthana wo pyar na hoga !
Jise sukha pade bitana wo sawan na hoga
Jise sabse pade chhupana wo paawan na hoga !
Jise aasan pade nibhana wo imaan na hoga
Jise doosara pade dikhana wo insaan na hoga !
Jise yaad pade dilana wo ibadat na hogi
Jise sabko pade dikhana wo inayat na hogi !
Jise roz pade jhukana wo nazar na hogi
Jise subah pade dikhana wo sahar na hogi !
Kise asaan pade bhool jana wo iljaam na hoga
Jise roz pade bahlana wo itmeenan na hoga !
Jise doosaron ko pade batana wo farz na hoga
Jise kabhi na pade chukana wo karz na hoga !
Jise logon ko pade bhulana wo zindgi na hogi
Jise roz pade yaad dilana wo bandagi na hogi !
Ravi ; Ahmedabad : 12 July 2011
क्यूँ घर से निकलते मैं रोज़ ही डरता हूँ ,
क्यूँ ईश्वर खुदा से रोज़ दुआ करता हूँ ,
क्यूँ अखबार की सुर्ख़ियों पर ठहरता हूँ ,
क्यूंकि हादसों से मरों में मैं भी मरता हूँ !
क्यूँ उन रोती तस्वीरों पर मैं बिफरता हूँ ,
क्यूँ बीबी बच्चों की चीख पर बिखरता हूँ ,
क्यूँ उन आँखों की बेबसी से मैं डरता हूँ ,
क्यूंकि उनकी आँखों में मैं भी मरता हूँ !
क्यूँ उम्मीद का इन्द्रधनुष नहीं भरता हूँ ,
क्यूँ लहू के रंग से मैं बेइन्तहा डरता हूँ ,
क्यूँ सड़क पे बिखरा खून देख ठहरता हूँ ,
क्यूंकि खून की बूंदों में मैं भी मरता हूँ !
क्यूँ मैं रोज़ रोज़ ही रोया करता हूँ ,
क्यूँ इन आंसुओं से मुंह धोया करता हूँ ,
क्यूँ मैं रोज़ दफ़न खुद को ही करता हूँ ,
क्यूंकि हादसों में रोज़ मैं ही मरता हूँ !!
रवि ; अहमदाबाद १३ जुलाई २०११
****************************************
Kyun ghar se nikalate main roz hee darata hun ,
Kyun bhagwaan Khuda se roz dua karata hun ,
Kyun akhbaar ki surkhiyon par thahrata hun ,
kyunki haadse se maron mein main bhi marta hun !
Kyun un roti tasveeron par main bifarata hun ,
kyun bibi bachchhon ki cheekh par bikharata hun ,
kyun un ankhon ki bebasi se main darta hun ,
kyunki unki ankhon mein main bhi marta hun !
Kyun ummeed ke indradhanush nahin bharta hun ,
Kyun lahoo ke rang se main itna darta hun ,
Kyun sadak pe khoon dekh main thaharata hun ,
Kyunki khoon ki bundon mein main bhi marta hun !
Kyun main roz roz hee roya karta hun ,
Kyun in ansuon se munh dhoya karta hun ,
Kyun main roz dafan khud ko hee karta hun ,
Kyunki haadson mein roz main hee marta hun !!
Ravi ; 13 July 2011
ज़िन्दगी को , अपनी तरह , जीने का गुमान है ,
शायद यही , और सिर्फ यही , मेरी पहचान है !
यूँ तो जी , सकता हूँ मैं भी , लोगों की तरह ,
पर उन्हें , मर मर के जीते , देख मन हैरान है !
वो कहते हैं , ये मैं नहीं , बस मेरा सुरूर है ,
पर मैं जानता हूँ , खुदा मुझ पे , मेहरबान है !
कैसे कह दूं कि मुझे , जिस्म की , परवाह नहीं कभी ,
जब मैं जानता हूँ , दिल मेरा इसका , मेहमान है !
क्यूँ गुज़रे वक़्त को , आगे से , जोड़ते हैं हम ,
सदियों का यहाँ बिखरा , हर पल में , सामान है !
पल की अगले ना ख़बर , पर दूर , सोचते हैं हम ,
ख़ुद पे इतना , क्यूँ हमें , इत्मीनान है !
क्यूँ गुरूर , होता है उन्हें , ऊँचे मुकाम पर ,
पतंग की उंचाई , तो हवा की , मेहरबान है !
फ़र्क दिल और जान का , जो , कर सके यहाँ ,
वो ही बस , पत्थर नहीं , एक इंसान है !
ज़िन्दगी को , अपनी तरह ,जीने का गुमान है ,
शायद यही , और सिर्फ यही , मेरी पहचान है !
रवि ; अहमदाबाद : ९ जुलाई २०११
*************************************************
Zindagi ko apni tarah jeene ka ek gumaan hai ,
Shayad yehi aur sirf yehi meri pehchan hai !
Yun to jee sakta hoon main bhi logon ki tarah
Par unhe mar mar ke jeete dekh man hairaan hai !
Wo kahte hain ye main nahin bas mera surur hai
Par main jaanta hun khuda mujh par meharbaan hai !
Kaise kah doon ki mujhe jism hi parwaah nahin hai
Jab main jaanta hoon dil mera iska mehmaan hai !
Guzre hue waqt ko aage se kyon jodte hain hum
Jab ki har pal mein bikhra sadiyon ka saman hai !
Ek ek pal ki aas nahin par door sochte hain hum
Kyon hamein apne aap par itna itmeenan hai !
Kyun gooroor hai unhe apne unche mukaam par
Jabki patang ki unchaai hawa ke meharbaan hai !
Dil aur jaan mein jo kar sake fark hamesha hee
Bas wo hi nahin patthar balki ek insaan hai !
Ravi Sharma ; Ahmedabad : 9 July 2011.
जीवन पथ पर जीवन भर तक , साथ रहोगे तुम मेरे !
तभी तो कहता हूँ तुमसे मैं , कि तुम ही हो बस तुम मेरे !
जब भी आएंगे जीवन में , सर्द हवाएं और अँधेरे ,
तुम पाओगी अपने संग में , मेरी बाँहों के घेरे !
तेरी आँखों में देखे हैं , सपने मैंने बहुतेरे ,
रंग बिरंगे इन्द्रधनुष से , चेहरे हैं तेरे मेरे !
देखा है तुमको जब से , मुझे इन सपनों से मिलना है ,
कलियाँ हैं जितनी दिल में , उन सबको अब खिलना है !
आँखों के कोनों से निकले , पानी को ना बहना है ,
जीवन में जो भी दुखकर है ,वो तुमको ना सहना है !
होठों के उन अंगारों को , तुमको अब ना पीना है ,
तुमको तो मेरी बाँहों में ,जी भर के अब जीना है !!
जीवन पथ पर जीवन भर तक , साथ रहोगे तुम मेरे !
तभी तो कहता हूँ तुमसे मैं , कि तुम ही हो बस तुम मेरे !!
रवि ; अहमदाबाद : ७ जुलाई २०११
Recent Comments