हमारा वतन !
झंडा अपने , वतन का हमेशा , हमें ऊँचा ही फहराना है ,
एक बार फिर से, इसे सोने की , चिड़िया हमको बनाना है !
वतन से अपने , हर वादे को , हमेशा हमको निभाना है ,
दूर हुए जो , एक दूजे से , सबको क़रीब अब लाना है !
क्या सही है , और क्या ग़लत है , ये सबको समझाना है ,
अछूते जो हैं , प्रगति से उनको , मुख्य धारा में लाना है !
गाँव शहर में , मरने से नवजात , बच्ची को हमको बचाना है ,
बेहतर नस्लों की , खातिर अब , माँओं को सारी पढ़ाना है !
भीख लेते , बच्चों को ना , देना कोई उलाहना है ,
एक एक को अब , खूब पढ़ाकर , सबको कामयाब बनाना है !
काम नहीं , होता कोई छोटा, मंत्र सबको सिखाना है ,
काम करो , हरेक मेहनत से, स्वाभिमान को अब जगाना है !
एक दूजे की , क़ौमें बने सब , ज़ज़बा ऐसा जगाना है ,
ना हिन्दू , मुस्लिम ना कोई , भारतीय सबको बनाना है !
पैसे के , भ्रष्टाचार के साथ , भ्रष्टाचार नियत का मिटाना है ,
ग़र ना मानें , सीधी बातों से , डंडे से उनको सिखाना है !
ना सोये अब , कोई भूखा , खाना सबको खिलाना है ,
महसूस हो , हिफाजत सबकी , अनुशासन को लाना है !
भ्रष्ट हो , या निकम्मा नेता, कुर्सी से उसको हटाना है ,
सब्र का , टूटा है बाँध अब , खुद राजनीति में आना है !
ना भूलें अंग्रेजी पर , माथे से , मातृभाषा लगाना है ,
संस्कारों का , शिक्षा से बढ़कर , महत्व अब समझाना है !
जो देखे , टेढ़ी आँखों से, सबक उसको सिखाना है ,
अपने वतन की , हिफाज़त में हमको , हंसते हुए मर जाना है !
प्यारे से , अपने भारत को , दुनिया से अच्छा बनाना है ,
वतन के एक एक , ज़र्रे को अपने , माथे से हमको लगाना है !
रवि ; गुड़गांव : १४ अगस्त २०११….