मेहंदी !
मेरे महबूब की मेहंदी का नज़ारा क्या है ,
काजल का इन आँखो में इशारा क्या है !
रवि ; दिल्ली : ५ अगस्त २०१३
मेरे महबूब की मेहंदी का नज़ारा क्या है ,
काजल का इन आँखो में इशारा क्या है !
रवि ; दिल्ली : ५ अगस्त २०१३
ज़िन्दगी की दौड़ में , शख़्स वो गुज़र गया ,
बेख़ौफ़ वो ज़िन्दा रहा , डर गया तो मर गया !
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आदमी का जीना मरना , ज़िन्दगी का खेल है ,
ग़र ज़िन्दा है तो पास है , मर गया तो फ़ेल है !
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आदमी इस दुनिया में , अपनी कहानी कर गया ,
मौत पे उसकी अगर , आँखों में पानी भर गया !
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रवि ; दिल्ली : ५ अगस्त २०१३
मेरे महबूब की मेहंदी का , नज़ारा क्या है ,
काजल का इन आँखो में , इशारा क्या है !
तेरी आँखों में डूब जायें , समंदर कितने ,
मेरे दिल की हस्ती का ये , किनारा क्या है !
तेरी मुस्कान पे क़ुर्बान हैं , हज़ारों दिल ,
फिर दिल मेरा प्यारा ये , बेचारा क्या है !
तेरी ज़ुल्फ़ों के बहने से , बहती है मस्ती ,
फिर हवा का तेरे बिन ये , गुज़ारा क्या है !
तेरी ख़ुशबू से मेरी साँस , आज है महकी ,
खोये ये होश आज मेरे , आवारा क्या है !
रवि ; दिल्ली : ५ अगस्त २०१३
मेरे मौला तू सबकी दुआओं का सिला दे दे ,
सारी दुनिया को दोस्ती का सिलसिला दे दे !
रवि ; दिल्ली : ४ अगस्त २०१३
मेरे मौला तू सबकी , दुआओं का सिला दे दे ,
सारी दुनिया को दोस्ती का , सिलसिला दे दे !
हारे ना कोई बाज़ी , ज़िन्दगी के खेल में ,
सब जीतें दोस्ती में यहाँ , तू ये फ़ैसला दे दे !
इन्सानियत का मज़हब , होता है सबसे ऊँचा ,
मज़हब के पहरेदारों को , तू ये इत्तिला दे दे !
ऊँचा रहेगा परचम , सच का इस जहाँ में ,
सच्चों का सारे अपने , तू एक क़ाफ़िला दे दे !
जीतेगें वो यहाँ पर , नेकी की राह चल कर ,
बन्दों को सारे अपने , तू ये हौसला दे दे !
रवि ; दिल्ली : ४ अगस्त २०१३
ख़ामोशी की आवाज़ सुनने की हमें आदत है ,
तनहाई के फूल चुनने की हमें आदत है !
रवि ; दिल्ली : ३ अगस्त २०१३
किसको भूलूँ और किसे याद करूँ ,
इस दिल से कैसे मैं फ़रियाद करूँ ,
रहूँ तनहा तो ढूँढता हूँ अपनों को ,
और भीड़ में तनहाई आबाद करूँ !
रवि ; मुम्बई : २ अगस्त २०१३
उस पत्ते की
कोख से निकलकर
हवा का वो झोंका
ठिठकता है
रूकता है
सम्भलता है
फिर
बहता है
कभी होशवास सा
तो
कभी मदहोश सा
कभी अहसास सा
तो
कभी बदहवास सा
कभी देवता सा
तो
कभी गुनहगार सा
कभी सितमग़र सा
तो
कभी शर्मसार सा
कभी धड़कन सा
तो
कभी साँस सा
कभी आँसू सा
तो
कभी मुस्कान सा
कभी सिसकी सा
तो
कभी किलकारी सा
कभी झिझक सा
तो
कभी बेहिचक सा
बहता है
और छूता है
उन तमाम हसरतों को
जो रोज़
लोगों की शक्ल में
सड़कों पे निकलती हैं
या फिर
बैठ कर बरामदे में
ख़ुद ही सँवरती हैं
या फिर
तनहाई की बाहों में
ख़ुद से ही सम्भलती हैं
हँसती हैं रोती हैं
ख़ुद में ही खोती हैं
ख़रीदती हैं बिकती हैं
घुटती हैं सिमटती हैं
खनकती हैं पिघलती हैं
नाचती हैं गाती हैं
संग अपने ये नचाती हैं
रोज़ रात को
थककर सोती हैं
पर सुबह
फिर से मचलती हैं
खुलती हैं
बन्धती हैं
बनती हैं
बिगड़ती हैं
मरती हैं
दफ़्न होती हैं
पर
मरके भी
फिर से पनपती हैं
और लोगों को
अपनी आग़ोश में लेकर
एक बार फिर से
चलती हैं
भागती हैं
मचलती हैं
बहकती हैं
ये हवा का झोंका
छूकर हसरतों को
अहसास दिलाता है
उनकी ज़िन्दगी का
जो चलती है
हर रोज़ यहाँ
बिना रूके
बिना थके
अपनी हसरतों के लिये !
ज़िन्दा हैं हसरतें
क्योंकि
ज़िन्दा है आदमी
और
ज़िन्दा है आदमी
क्योंकि
ज़िन्दा हैं हसरतें !!
रवि ; मुम्बई : २ अगस्त २०१३
मर के भी जीता हूँ मैं हर पल यहाँ ,
पल पल जी के मर चुके हैं वो जहाँ !
रवि ; दिल्ली : ३० जुलाई २०१३
ना ज़िन्दगी में कुछ भी , बेहिसाब होता है ,
हर ग़लती की सज़ा का , हिसाब होता है !
जो दे सके हर हाल में , इस जहाँ को रोशनी ,
कम नहीं ग़र एक भी , आफ़ताब होता है !
चाहे सुनाये ताने कितने , दुनिया उसके दाग़ पर ,
फिर भी जो देता चाँदनी , मेहताब होता है !
मौसम सुहाना ग़र तो , खिल सके हैं सब यहाँ ,
काँटों में जो खिल जाये , वो गुलाब होता है !
करे ज़ुल्म कितने कोई , ताक़त की कमान पर ,
बेआवाज़ खुदा की लाठी का , जवाब होता है !
रवि ; दिल्ली : २८ जुलाई २०१३
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