हैरान !
अपनी तनहाइयों पर हैरान होता हूं मैं ,
अध चुके ख़्वाबों के बीच खोता हूं मैं ,
पुकारूं किसको और कब तक पुकारूं ,
थककर ख़ुद की आवाज़ से सोता हूं मैं !
रवि ; दिल्ली : जुलाई २०१२
अपनी तनहाइयों पर हैरान होता हूं मैं ,
अध चुके ख़्वाबों के बीच खोता हूं मैं ,
पुकारूं किसको और कब तक पुकारूं ,
थककर ख़ुद की आवाज़ से सोता हूं मैं !
रवि ; दिल्ली : जुलाई २०१२
मुट्ठी भर आसमान की चाहत में
वो हथेली बंद हो गयी थी !
और सचमुच –
वो नीला आसमान
उस हथेली में सिमट आया था !
क्योंकि –
वो नीला आसमान भी
उन उँगलियों की कोमलता
महसूस करना चाहता था
वो उस हथेली में
जीवन का दर्पण देखना चाहता था !
लेकिन ना जाने क्यूँ ?
हथेली ने सोचा –
कहीं ये नीला आसमान
मुट्ठी में दबकर काला ना हो जाये !
और ..
मुट्ठी खुल गयी
आसमान हथेली से फिसलता रहा
वो चाहकर भी रुक ना सका
और ..
वो मुट्ठी भर आसमान खो गया !
आज एक बार फिर
दोनों समीप हैं
लेकिन अब चाहते हुए भी
हथेली मुट्ठी नहीं बन सकती
क्योंकि अब
उस सीधी सपाट हथेली पर
किसी का बसेरा है !
आसमान क्या करे ?
हथेली के बिना उसका कोई अस्तित्व नहीं !
हथेली और आसमान
दोनों की मजबूरी
दोनों ही हैं परेशान !
एक तनहा हथेली
एक अस्तित्वहीन आसमान !!
रवि ; रूड़की : सितम्बर १९८१
अक्सर मैंने सपनों में
एक देश देखा है –
आसमानों से परे , चाँद के पास
सितारों की छाँव में –
एक प्यारा सा देश !
जहाँ जीवन एक अभिशाप नहीं
जहाँ भूख से बिलखते बच्चे नहीं
जहाँ पीठ तक धंसे पेट नहीं
रोटी को तरसते लोग नहीं
ठण्ड से कांपते जिस्म नहीं
कहीं गहरे तक चुभती निगाहें नहीं
जहाँ खारा अश्रुजल –
प्यास के लिए नहीं पिया जाता
जहाँ जीवन में –
बस प्यार ही प्यार है !
लेकिन –
इन सपनों से हमेशा जागा हूँ मैं
सच देखने की चाह में
और देखे हैं –
भूख प्यास से बिलखते बच्चे
भूखे रोते बच्चों को सुलाने की
माँ की असफल कोशिशें
रोटी को तरसते लोग
और ठण्ड से सिकुड़ते जिस्म !
और हमेशा –
सच से आँखे चुराने की चाह में
फिर से सो जाता हूँ मैं !
लेकिन फिर वही सपना , वही देश , वही लोग ……. !!
रवि ; रूड़की : जुलाई 1981
मैं पागल नहीं हूँ
और ना ही
मेरा दिमाग़ ख़राब है
ना तो मैं अँधा हूँ
ना ही लूला लंगड़ा
फिर भी हर शख्स
देखता है मुझे
नफ़रत की नज़र से
बिना मुझे जाने बूझे
मेरा कसूर
शायद बस इतना ही है
कि मैं बेरोजगार हूँ !!
रवि ; लखनऊ : सितम्बर 1978
मैं हूँ
साथ तुम्हारे !
मैं हूँ
जीवन की आस
वो नीला आकाश
प्रेम सशक्त
शिराओं का रक्त !
तुम्हे
चलना है
सितारों के पार
जीना है
साँसों में मेरी
जीवन अपार !!
रवि ; गुडगाँव : ११ जून २००३
कहा था उसने
बहता हूँ रगों में उसकी
खून की तरह मैं !
बहता हुआ खून
जमता नहीं कभी
पर जमाता है
विश्वास उसका !
और जोड़ता है
अतीत को आज से
भावना को बात से
प्रेम को साथ से !!
रवि ; गुडगाँव : १३ जून २००३
कौन हूँ मैं ?
बीता हुआ कल
या स्वप्न की शकल
भीगी आँखों का तारा
या टूटता सितारा ?
कौन हूँ मैं ?
महकता सावन
या बहकता साजन
ओस का घेरा
या बासी सवेरा ?
कौन हूँ मैं ?
शाम का अँधेरा
या सूरज का सवेरा
भीड़ का मेला
या मेले में अकेला
जीवन का अंत
या जीवन अनंत ?
कौन हूँ मैं ??
रवि ; गुडगाँव : ५ जून २००३
दीप या ज्योति ,
किसका है दोष ?
क्यूँ होता है
दिया तले अँधेरा ?
प्रकाश या अंधकार ,
कौन है जगता ?
जब रात्रीपथ पार
उगता है सवेरा ?
विश्वास या प्रेम
या है संयम ?
कौन पहला दोषी
टूटने का बसेरा ?
सूर्यग्रहण चंद्रग्रहण
या फिर प्रकृति ?
कौन ढांपता है
पृथ्वी का घेरा ?
है छल या अकर्म
या फिर नियति ?
क्यूँ है चारों ओर
अविश्वास का फेरा ?
दोषी हूँ मैं
या हैं वो दोषी ?
क्यूँ लगा मेरे प्रति
शंकाओं का डेरा ?
प्रतीक्षा समय की
या करूँ साधना ?
जो मिट जाये
जीवन संशय मेरा ??
रवि ; अहमदाबाद : २६ मार्च २०१२
Deep ya jyoti
kiska hai dosh ?
Kyun hota hai
diya tale andhera ?
Prakash ya Andhkar ,
Kaun hai jagta ?
Jab ratripath paar
Ugata hai savera ?
Vishwaas ya Prem
ya hai sanyam ?
Kaun pahla doshi
Tootane ka basera ?
Suryagrahan chandragrahan
Ya phir prakriti ?
Kaun dhaanpata hai
Prithvi ka ghera ?
Hai ye chhal ya akarm
Ya phir niyati ?
Kyun hai charon or
Avishwas ka phera ?
Ye main hun
Ya hain wo doshi ?
Kyun laga mere prati
Galatfahmiyon ka dera ?
Prateekha samay ki
Ya karun saadhana ?
Jo mita jaaye
Jeevan sanshay mera ??
Ravi ; Ahmedabad : 26 march 2012….
देखता हूँ , जो मुड़कर अपने दिन
ज़िन्दगी के , वो बिताये पल छिन
तो लगता है , नहीं मुझे थी खबर
सो रहा था ,अपने आप में बेखबर
गुनाहों की भीड़ में , मैं बस अकेला था
चारों तरफ मेरे ,गुनाहों का ही मेला था
किसके थे गुनाह , मैं ये सोचता हूँ
क्यूँ खो गया था मैं , ये पूछता हूँ
पर क्यूँ पूछता हूँ , जब मैं ये जानता हूँ
करता हूँ स्वयं स्वांग , पर नहीं मानता हूँ
ये सब किया धरा , मेरा ही घेरा है
गुनाहों का लगाया यहाँ , मैंने ही डेरा है
गुनाह मेरी छाती में , पौधे से पनपते हैं
निकलकर सापों से फिर , सबको वो डसते हैं
मैं सोचता हूँ , मैं उन्हें हांकता हूँ
पर किधर जायेंगे वो , मैं नहीं भांपता हूँ
फिर कैसे मैं , ख़ुद पे ऐतबार करूँ
हिम्मत नहीं है , कि ख़ुद से इकरार करूँ
कब तक चलेगा सिलसिला , मैं क्यूँ खोता हूँ
कर्म पुरुष हूँ मैं , फिर मैं क्यूँ रोता हूँ
उठना है मुझे , गुनाहों को मार गिराना है
मारकर उनको मुझे , फिर आग़ से जलाना है
ताकि ना रहे अस्तिव उनका , जो मुझको लुभाता है
फिर दोष बोध करा के , मुझे ख़ूब ही रुलाता है
होऊंगा सफल , मुझे जीतने की आस है
मिटाऊंगा गुनाहों को , इस जीवन में विश्वास है !!
रवि ; अहमदाबाद : २३ मार्च २०१२
Dekhta hun , jo mudkar apne din
Zindagi ke , wo bitaaye pal chhin
To lagta hai , nahin thi mujhe khabar
So raha tha , apne aap mein bekhabar
gunaahon ki bhid mein, main bas akela tha
chaaron taraf mere , gunaahon ka hi mela tha
Kiske the wo sab , main ye sochta hun
Kyun gaya tha kho , main ye poochhta hun
Par kyun poochhta hun , jab main jaanta hun
karta hun swayan swang , par nahin manta hun
Ye sab kiya dhara , mera hi ghera hain
Gunaahon ka lagaya yahan , maine hi dera hai
Gunaah meri chhati mein , paudhe se panapate kain
Phir nikalakar saapon se , wo sabko hi dasate hain
Main sochta hun , main unhe hankta hun
Par kidhar jaayenge wo , main nahin bhanpata hun
Phir kaise main , khud pe aitbaar karun
himaat nahin hai ki , main khud se ikraar karun
kab tak chalega ye silsila , main kyun khota hun
Karm purush hun main phir , main kyun rota hun
Uthana hai mujhe , gunahon ko mar girana hai
Markar unko mujhe , phir aag se jalana hai
Taki na rahe unka astiv , jo mujhko lubhata hai
Phir dosh bodh unka mujhe , khoob hi rulata hai
Hounga safal , mujhe jeetane ki aas hai
Mitaaunga gunaahon ko, is jeevan mein vishvaas hai !!
Ravi ; Ahmedabad : 23 March 2012
उड़ना है उन्हें
सपनों के पंख लगाकर
और छूना है
वो ऊँचा आकाश
चांद तारों के पार
लिए खुशियाँ अपार !
नहीं सोचना है
क्या कहता है कोई
बनानी है अपनी बात
अपना धैर्य , अपनी चाह
और अपनी राह !
देखेंगे उन्हें जब
छूते हुए वो नीला आसमान
ना छिप सकेगा हमसे भी
हमारा अपना अभिमान !
नव वर्ष पर और क्या करूँ
मैं तुम्हारा सम्मान ?
हम और हमारे बच्चों का
प्रणाम हे भगवान् !
अब तुम्हे ही देना है उन्हें
ख़ुशी का , प्यार का ,
और उड़ने का वरदान !!
रवि ; अहमदाबाद : २ जनवरी २०१२
udana hai unhe
lagakar sapno ke pankh
aur chhoona hai
wo ooncha akash
chand taron ke paar
liye khushiyan apaar !
nahin sochana hai
kya kahta hai koi
banaani hai apni baat
apna dhairya , apni chaah
aur apni raah !
dekhenge unhe jab
chhoote hue neela aasmaan
na chhip sakega humse bhi
hamara apna abhimaan !
nav varsh par aur kya karun
main tumhara sammaan ?
hum aur humare bachchon ka
pranam he bhagwaan !
ab tumhe hi dena hai unhe
khushi ka , pyaar ka ,
udane ka vardaan !!
Ravi ; Ahmedabad : 2 January 2012
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