नयी दुनिया … !!
हसरतों से भरी आँखे सबकी
ख़्वाहिशों से भरे प्याले हैं
तनहाईयां से लिपटी रूहें
पर नाचते मतवाले हैं
सँवरने के ढंग हैं कितने
पर दिल बहुतों के काले हैं
बेनियत अपनी भरने को
छीने ग़रीबों के निवाले हैं
चैन ना मिलता कहीं भी
दौड़ते पैरों में पड़े छाले हैं
ज़रूरतों को अपनी अपनी
सभी सरों पर संभाले हैं
कहने को बहुत यारी है
और वादों के रिसाले हैं
पर पीठ पीछे दोस्तों के
बस छुरी को निकाले हैं
क्या हो गया है जमाने को
क्यूँ ख़ाली प्यार के हाले हैं
सामान से घर भरते हैं सब
पर रिश्तों को तरसते घरवाले हैं !