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क्यूँ इश्क़ को यूँ ही छुपा के रखा है ,
क्यूँ पलकों के पीछे सजा के रखा है !

दे दे मुझको अब तो तू मेरी ज़िन्दगी ,
क्यूँ नज़रों को क़ातिल बना के रखा है !

अब ख़ुशबू तेरी आती है मेरी साँसों से ,
क्यूँ ये हुस्न का जादू चढ़ा के रखा है !

मैं अब सोचता हूँ आ बसूँ दिल में तेरे ,
क्यूँ पहरा साँसों का लगा के रखा है !

कभी ख़्वाब में तेरे तुझे ना मैं चूम लूँ ,
क्यूँ सपनों को अपने जगा के रखा है !

तेरा आइना भी पूछता है तुझसे अब ,
क्यूँ आरज़ू को तूने दबा के रखा है !

रवि ; दिल्ली : ११ अक्टूबर २०१३