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कैसे कह दूँ कि दुनिया , बड़ी हरजाई है ,
जबकि पहलू में तेरे मैंने , ख़ुशी पाई है !

साथ छोड़ा हो तो क्या , दोस्तों ने कभी ,
मुझसे लिपटी ये हमेशा , मेरी परछांई है !

सोया हूँ थक के ग़र और , रो रो के कभी ,
ख़्वाबों में रात में दुनिया , नयी दिखाई है !

ग़र कभी टूटा है इन , धड़कनों का समां ,
अगले पल साँस ने इक , ज़िन्दगी चुराई है !

ग़र जो स्याह रात हो , अमावस की कभी ,
ख़ुद ही सुबह मेरी सूरज की , हँसी लाई है !

रवि ; दिल्ली : ३ फ़रवरी २०१३