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तुझको तनहाइयों में , सजाते रहे ,
उम्र भर यूँ ही हम , गुनगुनाते रहे !

तेरी ख़ामोशियों से , नहीं था गिला ,
ख़ुद को ही सुनते और , सुनाते रहे !

बीते लम्हे वो और , गुज़रे हुए दिन ,
ख़ुद की साँसों में हम , बसाते रहे !

तुझसे माँगा नहीं था , तुझको कभी ,
फिर भी ख़ुद को तुझ पे, लुटाते रहे !

आशिक़ी का तुझको , पता तब चला ,
बिन कहे जब दुनिया से हम , जाते रहे !

रवि ; बेंगलोर : ५ मार्च २०१४