एक सच का फ़ासला है , तेरे मेरे दरमियाँ ,
झूठ का बिखरा सिला है , तेरे मेरे दरमियाँ !

वक़्त भी भूला कहीं और , याद मुझको भी नहीं ,
ना बचा कुछ भी भला है , तेरे मेरे दरमियाँ !

चाँदनी तपती हुई और , ओस भी झुलसी हुई ,
पल ना अब कोई खिला है , तेरे मेरे दरमियाँ !

चाँद भी अब सुर्ख़ है और , आसमां धुँधला हुआ ,
इक जफा का सिलसिला है , तेरे मेरे दरमियाँ !

ये हवा ख़ामोश है और , साँस भी ग़ुम सी ज़रा ,
लम्हा इक फिर से जला है , तेरे मेरे दरमियाँ !

रवि ; दिल्ली : ६ दिसम्बर २०१३