ज़िन्दगी है हौसला और , हौसला है आदमी ,
अनगिनत सपनों की बाहों , में पला है आदमी ।

मेरी आँखें हैं समंदर , तेरी आँखों में है क़तरा ,
ऐसी बातें सुन के लगता , दिल जला है आदमी ।

इश्क़ होठों पे दहकता , दिल में उगते फूल हैं ,
रोज़ ही बहके है ख़ुद से , मन चला है आदमी ।

ये है हिन्दू ये मुसलमां , सोचते हैं सब यहाँ ,
मज़हबी तलवार से क़त्ल , कर चला है आदमी ।

चाहे कितने भी हों तूफ़ाँ , साहिलों पे आग़ हो ,
पहुँचा फिर भी मंज़िलों पे , ज़लज़ला है आदमी ।

रवि ; दिल्ली : ३ मई २०१३