तसव्वुर में ही तेरे , तुझसे मुलाक़ात करूँ ,
क्यूँ होश में आने की , मैं कोई बात करूँ !

होगा नज़रों का तेरी , सामना मुझसे कभी ,
मैं इसी आस में खोया , दुआ दिन रात करूँ !

तेरी तनहाई भी तुझको , रोज़ चुभती है वहाँ ,
बात ये सच है या मैं , बन्द ख़यालात करूँ !

तुझपे क़ुर्बान मेरी जाँ , तो ये दिल क्या है ,
कैसे मैं पेश मगर , इसका इसबात करूँ !

तसव्वुर से तू चल के , आये पहलू में मेरे ,
मैं सोचता हूँ कैसे पैदा , वो हसीं हालात करूँ !

रवि ; दिल्ली : १७ सितम्बर