क्यूँ सुनाऊँ तुमको मैं … !!
ज़िन्दगी का वाे फ़साना ना रहा ,
दिल भी अब ये दीवाना ना रहा !
भीगें बरसातों में सोचा बरसों से ,
आज पर मौसम सुहाना ना रहा !
बेरूखियों से लफ़्ज भी गूँगे हुए ,
और वो दिलकश तराना ना रहा !
परछाँईयाँ पलकों में धुँधली हुई ,
कनखियों का मुस्कुराना ना रहा !
क्यूँ सुनाऊँ तुमको मैं शिकवे गिले ,
प्यार जब अपना पुराना ना रहा !
रवि ; दिल्ली : ७ जुलाई २०१४