उठना है तो आँधी ना बन ,
तू आँखों में चुभता जायेगा ,
गहरी जड़ों का तू वृक्ष बन ,
कृतज्ञ हर कोई हो जायेगा !

तू ग़र भूला कभी ज़मीन को ,
तो मुश्किल से ख़ैर मनायेगा ,
किसी भी रोज़ सूखे पत्ते सा ,
तू हवा में कहीं उड़ जायेगा !

ज़मीन देगी तुझे पोषण सदा ,
तू सदा ही बढ़ता जायेगा ,
हवा का रूख़ कैसा भी हो ,
तू ऊँचा ही उठता जायेगा !

ग़र आया कभी तूफ़ान तो ,
उसको भी तू सह जायेगा ,
ग़र तोड़ दे वो तेरी डालियाँ ,
तू कोपलें फिर से उगायेगा !

ना चली हवा तो होगा शांत ,
और हवा में तू मुसकायेगा ,
चिड़ियों की बोली बोलेगा ,
तू मिट्टी का क़र्ज़़ चुकायेगा !

तेरे नीचे जब भी बैठे कोई ,
गहरी छाँव सदा ही पायेगा ,
तेरा मानेंगे सब परोपकार ,
तू पीढ़ियों में पूजा जायेगा !

न चाहेगा किसी से कुछ ,
तू संतोष में ही समायेगा ,
जिस हवा मे लेगा सांस ,
उसको भी तू लौटायेगा !

बस तू सोच ले तू कौन है ,
फिर ना खुद को सतायेगा ,
तू लेगा जो भी ज़िन्दगी से ,
आजन्म उसको लुटायेगा !

तेरी नज़र में सब होंगे एक ,
तू भेद ना कोई जतायेगा ,
फल पुष्प हों या डालियाँ ,
दूसरों के काम ही आयेगा !

जब जायेगा इस जन्म से ,
तो सबको तू याद आयेगा ,
ना होगा तेरा वजूद कहीं ,
पर ख़ुशबू तू छोड़ जायेगा !!

रवि ; दिल्ली : १८ सितम्बर २०१३

:: Mixed use of Hindi and Urdu words is intentional .