पहचान !
मेरी आँखों की गहराई से मुझे तुम जान लेना ,
मेरे ख़्वाबों की सच्चाई से मुझे पहचान लेना ,
ग़र कभी भूल के भी भूलूँ तुझे मैं ज़िन्दगी में ,
अपने साॅंसों की आहट से बस मेरा नाम लेना ।
रवि ; दिल्ली : जुलाई २०१२
मेरी आँखों की गहराई से मुझे तुम जान लेना ,
मेरे ख़्वाबों की सच्चाई से मुझे पहचान लेना ,
ग़र कभी भूल के भी भूलूँ तुझे मैं ज़िन्दगी में ,
अपने साॅंसों की आहट से बस मेरा नाम लेना ।
रवि ; दिल्ली : जुलाई २०१२
चाहूं कितना भी संभालना , फिर भी ना संभलती है ,
ज़िन्दगी हमेशा बदलती है , हर शाम यूं ही ढलती है !
रवि ; दिल्ली : अगस्त २०१२
वक़्त की बिसात पर आज मेरा साया है ,
ग़ुबार दिल पे पुरानी बातों का छाया है ,
क्या भूलूं और क्या याद करूं मैं आज ,
खोके ज़िन्दगी को मैंने खुद को पाया है ।
रवि ; ऍठलाण्ठा : ३० सितम्बर २०१२
बस वक़्त की फिराक़ में ज़िंदगी निकल गयी ,
बात छुपाई हर हाल में पर ज़ुबंा फिसल गयी ,
किया क्या ना हमने और कितना पुकारा उन्हे ,
पर बह चुकी वफ़ा में उनकी निगाह बदल गयी !
रवि ; ऍठलाण्ठा : २९ सितम्बर २०१२
चिंगारियों से निकली क्या आग़ ये वही है
जिसने जलाया दामन रक़ीबों का बार बार !
रवि ; ऍठलाण्ठा: २८ सितम्बर २०१२
क्यूँ मुझे वो गीत कुछ सच्चा सा नहीं दिखता है ,
क्यूँ मुझे वो संगीत कुछ अच्छा सा नहीं दिखता है ,
क्यूँ मुझे उन आँखों में काेई सपना सा नहीं दिखता है ,
क्यूँ मुझे उन बातों में कोई अपना सा नहीं दिखता है ,
हैै ये मेरा , मेरे दिल का या मेरी इन आँखों का कसूर ,
कि अक्स मुझे अपना भी धुन्धला सा अब दिखता है ।
रवि ; न्यूयार्क : २१ सितम्बर २०१२
मेरे ग़म मेरी तनहाई को ,
जब से है यूँ चाहा तुमने ,
तभी से मुझे वो तनहाई ,
एक अनजान सी लगती है !
हर लम्हा तबस्सुम की बाहों में ,
हर सांस तरन्नुम की छाँव में ,
हर धड़कन साज़ की महफ़िल में ,
नगमों की बरसात सी लगती है !
मेरी तुम्हारी वो तमाम यादें ,
यादों सी जुडी वो सारी बातें ,
इस रात की उजली छाँव में ,
सपनों की बारात सी लगती है !!
मेरे ग़म मेरी …..
रवि ; रुड़की : १३ दिसंबर 1981
तुम उदास मत होओ
मैं तुम्हारी
ज़िन्दगी से चला जाऊँगा
एक गुजरे वक़्त की मानिंद
जो कभी नहीं लौटता !
वो तमाम यादें भी
आपने साथ ले जाऊँगा
जो हमेशा तुम्हारे साथ हैं !
दर्द भरी ख़ामोशी भूलकर
मैं मुस्कराऊंगा
ग़म के अफ़साने भूलकर
मैं मीठे गीत गुनगुनाऊंगा
अपनी तन्हाइयों को मैं
अपना हमकदम बनाऊंगा
और भूलकर भी
मैं तुम्हे याद नहीं आऊंगा !
लेकिन जब कभी –
तुम्हे ये अहसास हो
की तुम अकेली हो
तुम्हे किसी दुसरे की
तन्हाई का साथ चाहिए
तब उस मोड़ पर –
तुम देर नहीं करना
मुझे धीरे से पुकार लेना
मैं हमेशा –
कहीं तुम्हारे साथ हूँ !!
रवि ; नवम्बर १९८१
हाँ ! देखी है वो भी एक ज़िन्दगी !
प्यार की ज़फाओं पर आंसू बहाती एक ज़िन्दगी ,
रोती , सुबकती और सिसकती हुई एक ज़िन्दगी ,
हाँ ! ज़िन्दगी ही तो थी और कहूँ क्या मैं उसे ,
वक़्त में तिल तिल कर मरती हुई एक ज़िन्दगी !!
हाँ ! देखी है वो भी एक ज़िन्दगी !
रवि ; रुड़की : मार्च १९८०
मेरी सूरत देखकर मुझे कौन पहचान सकेगा
तेरी ही परछांई नज़र आएगी मेरी सूरत में !
रवि ; जनवरी १९८१
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