बिसात !!
वक़्त की ये कैसी बिसात है ,
कहीं दिन तो कहीं रात है !
रवि : दिल्ली ; १५ जुलाई २०१३
वक़्त की ये कैसी बिसात है ,
कहीं दिन तो कहीं रात है !
रवि : दिल्ली ; १५ जुलाई २०१३
मैं हूँ आग़ का दरिया , वो बरसाता पानी है ,
इस बादल से मेरी , बहुत पहचान पुरानी है !
रवि ; दिल्ली : १३ जुलाई २०१३
दुनिया की उलझी बातों को , मन में सुलझाता हूँ मैं ,
ज़ुल्फ़ों के साये में तेरे , ख़्वाबों में खो जाता हूँ मैं !
रवि ; दिल्ली : ११ जुलाई २०१३
आज उनकी याद में , क्यूँ मैं इतना रोता हूँ ,
खोये बरस बहुत पहले , आज क्यूँ मैं खोता हूँ !
रवि ; दिल्ली : ४ जुलाई २०१३
क़हर का अंजाम हमेशा , क़हर ही होता है ,
तो क्यूँ ज़हर ये इसां , क़ुदरत में बोता है ?
और जब टूटती हैं हदें , क़ुदरत के सब्र की ,
फिर क्यूँ क़हर से घबरा , इंसा यूँ रोता है ?
रवि ; दिल्ली : २२ जून २०१३
ज़िन्दगी की बात थी तो ज़िन्दगी में खो गये ,
मैं भी उनका हो गया और वो भी मेरे हो गये !
रवि ; दिल्ली : २१ जुलाई २०१३
ज़िन्दगी में ना मेरी कोई शरीक़ था ,
पर मौत का मातम सबने मनाया मेरा .
रवि ; दिल्ली : १९ जून २०१३
लगे अपना सा आसमां और ये ज़मीं ,
जब तू है मेरे साथ ओ मेरे हसीं !
रवि ; दिल्ली : २५ मई २०१३
दूर तक अक्स मुझे अपना दिखाई देता है ,
सबकी आँखों का मुझे सपना दिखाई देता है ।
रवि ; दिल्ली : २५ मई २०१३
ज़िन्दगी में ना कोई अब मुक़ाम चाहता हूँ ,
देखा बहुत कुछ मैने अब विराम चाहता हूँ !
रवि ; दिल्ली : २२ मई २०१३
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