भूला हूँ ख्वाब … !!
चाँदनी रात भर , शोलों सी , जलाती थी बदन ,
भूला हूँ ख़्वाब जो , उस रात , हमारा ना खिला !
रवि ; दिल्ली : १९ मई २०१४
चाँदनी रात भर , शोलों सी , जलाती थी बदन ,
भूला हूँ ख़्वाब जो , उस रात , हमारा ना खिला !
रवि ; दिल्ली : १९ मई २०१४
ना शिकायत है कोई , ना ही है कोई अब गिला ,
ये तो क़िस्मत थी हमारी , जिसे चाहा ना मिला !
रवि ; दिल्ली : १८ मई २०१४
दिल के होठों से यूँ , मुस्काये मेरी ज़िन्दगी ,
ख़ुद ही साँसों से महक , जाये मेरी ज़िन्दगी !
है चमकती धूप और , है यहाँ दिलकश समां ,
दुआओं से है रोज़ सँवरी , जाये मेरी ज़िन्दगी !
चाँद भी तारे भी हैं , और चाँदनी मदहोश है ,
रात को इक जश्न सा , मनाये मेरी ज़िन्दगी !
जो भी चाहूँ मैं ज़रा , वो हो रहा है सब यहाँ ,
ख़्वाब सारे यूँ ही सच , बनाये मेरी ज़िन्दगी !
क़ुदरती हर बात है , ये क़ुदरती सौग़ात है ,
क़ुदरतों सा हर पल यूँ , सजाये मेरी ज़िन्दगी !
रवि ; दिल्ली : १८ अप्रैल २०१४
जो भी चाहूँ मैं ज़रा , हो रहा है सब यहाँ ,
ख़्वाब सारे यूँ ही सच , बनाये मेरी ज़िन्दगी !
रवि ; दिल्ली : १७ अप्रैल २०१४
चाँद भी तारे भी हैं , और चाँदनी मदहोश है ,
हर रात इक जश्न यूँ , मनाये मेरी ज़िन्दगी !
रवि ; दिल्ली : १६ अप्रैल २०१४
है चमकती धूप और , रोज़ है दिलकश समां ,
दुआओं से हर रोज़ सँवरी , जाये मेरी ज़िन्दगी !
रवि ; दिल्ली : १५ अप्रैल २०१४
दिल के होठों से यूँ मुस्काये मेरी ज़िन्दगी ,
ख़ुद ही साँसों से महक जाये मेरी ज़िन्दगी !
रवि ; दिल्ली : १४ अप्रैल २०१४
ज़िन्दगी में सबकी बस , ऐसा ही नूर हो ,
ख़ुशियाँ हों हर साँस में , ऐसा सुरूर हो !
चमक हो दिलों में , हर पल हँसी साथ हो ,
ग़ैर दर्द में आँसू पर , आँख में ज़रूर हो !
चाहे कभी आपका , कोई नाम हो न हो ,
दरियादिली पर आपकी , बहुत मशहूर हो !
बच्चों से ख़्वाब हों , सब्र का इनाम हो ,
ज़िन्दगी इमान की , जीने का शऊर हो !
कामयाबी हर क़दम , मंज़िल मक़बूल हो ,
पर कभी भूल से भी , न कोई मगरूर हो !
रवि ; दिल्ली : १५ मार्च २०१४
ज़िन्दगी में सबकी बस ऐसा ही नूर हो ,
ख़ुशियाँ हों हर साँस में ऐसा सुरूर हो !
रवि ; दिल्ली : १४ मार्च २०१४
तुझको तनहाइयों में , सजाते रहे ,
उम्र भर यूँ ही हम , गुनगुनाते रहे !
तेरी ख़ामोशियों से , नहीं था गिला ,
ख़ुद को ही सुनते और , सुनाते रहे !
बीते लम्हे वो और , गुज़रे हुए दिन ,
ख़ुद की साँसों में हम , बसाते रहे !
तुझसे माँगा नहीं था , तुझको कभी ,
फिर भी ख़ुद को तुझ पे, लुटाते रहे !
आशिक़ी का तुझको , पता तब चला ,
बिन कहे जब दुनिया से हम , जाते रहे !
रवि ; बेंगलोर : ५ मार्च २०१४
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