फ़र्ज़ ! ……… farz !
मैं चलता हूँ दूर , जितना कभी भी
तुम भी , उतनी ही दूर चल जाते हो
फ़र्क सिर्फ़ इतना है , हम दोनों में
मैं पास आता हूँ , तुम दूर जाते हो !
चला है ये सिलसिला , बरसों से हमारा
फिर क्यूँ , इसे तुम नयी बात बतलाते हो
ग़र मिलना ना हो , होके हमरस्ता भी
फिर क्यों साथ का , ऐसा फ़र्ज़ निभाते हो !!
रवि ; अहमदाबाद ; १९ मई २०१२
Main chalata hoon door , jitna kabhi bhi
Tum bhi , utani hi door chal jaate ho
Fark sirf itna hai , hum dono mein
Main paas aata hun , tum door jaate ho !
Chala hai Ye silsila , barason se hamara
Phir Kyun , ise tum nayi baat batalate ho
Gar Milna na ho , hoke humrasta bhi
Phir Kyon saath ka , aisa farz nibhate ho !!
Ravi ; Ahmedabad : 19 May 2012
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