दोस्त !!
दुनिया में दोस्त खुदा के फ़रिश्ते होते हैं ,
कहीं ख़ून से भी पक्के उनसे रिश्ते होते हैं !
दुनिया में दोस्त खुदा के फ़रिश्ते होते हैं ,
कहीं ख़ून से भी पक्के उनसे रिश्ते होते हैं !
हसरतों उम्मीदों और मक़सदों का है खेला ,
लम्हों का ये समंदर और यादों का है मेला ,
लगा लो गले हंस के या रो रो के साँस लो ,
दो पल की ये दुनिया फिर जाना है अकेला !
दिल ढूँढता है लम्हों को , जो मुस्कुरा रहे हों ,
बात मेरे दिल की तेरे , दिल से चुरा रहे हों !
रात का वो भीगा ख़्वाब , होठों पे ला रहे हों ,
ओस की ख़ुशबू लिये , नज़रों से गा रहे हों !
यादें बसी हों आँखों में , कुछ ना छुपा रहे हों ,
पलकें मूँदे धड़कन में वो , मेरी समा रहे हों !
लिये हाथ हाथों में घुले , साँसों में जा रहे हों ,
लम्हा लम्हा मुझको ही , मुझसे मिला रहे हों !
इक़रार हर ख़ामोशी का , मुझको बता रहे हों ,
वो ज़िन्दगी में प्यार को , हर पल जगा रहे हों !
दिल ढूँढता है लम्हों को जो मुस्कुरा रहे हों ,
बात मेरे दिल की तेरे दिल से चुरा रहे हों !
मज़हबों का चलो आज से , कारोबार घटाया जाये ,
इन्सानियत को ज़िन्दगी का , मक़सद बनाया जाये !
भगवान और खुदा में , मिटाया ना फ़र्क़ हमने ,
इन्सानों के दर्मियाँ ही , अब फ़र्क़ मिटाया जाये !
घंटियों और अज़ानों से , ना बेहतर हुईं हैं नस्लें ,
इन्सानियत की दुआ में , अब सर झुकाया जाये !
मज़हब के अगवाइयों ने , मिटाये हैं नूर कितने ,
अब तो दिया अमन का , हर घर जलाया जाये !
है आँखों में ख़ौफ़ कब से , मासूमियत के बदले ,
बचपन के होंठों पे फिर , हँसी को खिलाया जाये !
बंजर से बन गये हैं , इन काँटों से ज़हन सभी के ,
मुहब्बत का हल चला के , फिर गुल खिलाया जाये !
चलो मज़हबों का अाज से कारोबार घटाया जाये
हर दिल में इन्सानियत का एक बुत बिठाया जाये !
रात भर चाँद जला , बिन किये कोई गिला ,
चाँदनी सुबह घुली , साथ ना कोई मिला !
ओस सूखी सी मिली , मिट्टी भीगी सी मिली ,
टूटे ख़्वाबों का सिला , साथ ना कोई मिला !
बेरहम धूप खिली , मुरझाई दिल की कली ,
दर्द सांसों में ढला , साथ ना कोई मिला !
नश्तर यादों के चुभे , झूठे वादों के मुझे ,
लम्हा कोई ना खिला , साथ ना कोई मिला !
शिकवा आँखो ने किया , अश्क़ होठों ने पिया ,
मै अकेला ही चला , साथ ना कोई मिला !
ओस सूखी सी मिली , मिट्टी भीगी सी मिली ,
टूटे ख़्वाबों का सिला , साथ कोई ना मिला !
रात भर चाँद जला , ना किया कोई गिला ,
चाँदनी सुबह घुली , साथ कोई ना मिला !
रात के घरौंदे में
देर तक खेलने के बाद
थककर सोयी वो चाँदनी
जब सुबह की खिड़की से
बाहर झांकती है
तो यक़ीं की चादर
ख़ुद ब ख़ुद
कहीं दूर उड़ जाती है
और वो उघड़न
ये पैग़ाम पहुँचाती है
कि गयी रात
कोई हक़ीक़त नहीं
बस एक सपना थी !
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