तलाश !!
मैं
उन आँखो की तलाश में हूँ
जिनकी आस ने
मुझको तराशा था !
बरसों निकल गये हैं
वक़्त से आगे कहीं
पर मैं हूँ
कि
वक़्त की ग़र्द में
दबे हुए उस लम्हे को
ढूँढ रहा हूँ
जो उस दिन
उसकी आँखों से निकल
आँसू बनकर बह गया था !
सुना था
उसके गर्म होठों को छूकर
वो आँसू
भाप बनकर
हवा में उड़ा था
और जा मिला था
बादलों में !
उस दिन से
हमेशा
जब कभी
बादल बरसते हैं
मैं
बारिश में भीगता हूँ
और गिरती बूँदों को
हथेलियों में समेटता हूँ
और ढूँढता हूँ
उस आँसू को
जो उस दिन
बादलों में मिला था
पर
पहचान नहीं पाता हूँ
किसी भी बूँद में
उस आँसू का अस्तित्व !
मैं जानता हूँ
कि
गया वक़्त नहीं लौटता
फिर भी
न जाने क्यूँ
ढूँढता हूँ
हर बारिश में
वो खोया लम्हा
जो बह गया था
उसकी आँखों से
लिये
मेरा अहसास
और
उन आँखो की आस !!
रवि ; दिल्ली : ६ जनवरी २०१३
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