इरादे !
भूल के साया भी तुमको चलना होगा ,
सह के दर्द भी तुमको सम्भलना होगा ,
हों चाँद तारे भी चाहे ख़िलाफ़ तुम्हारे ,
इरादों से तुम्हे वक़्त को बदलना होगा !!
रवि ; पाम स्प्रिंग्स : ७ फ़रवरी २०१३
भूल के साया भी तुमको चलना होगा ,
सह के दर्द भी तुमको सम्भलना होगा ,
हों चाँद तारे भी चाहे ख़िलाफ़ तुम्हारे ,
इरादों से तुम्हे वक़्त को बदलना होगा !!
रवि ; पाम स्प्रिंग्स : ७ फ़रवरी २०१३
कैसे कह दूँ कि दुनिया , बड़ी हरजाई है ,
जबकि पहलू में तेरे मैंने , ख़ुशी पाई है !
साथ छोड़ा हो तो क्या , दोस्तों ने कभी ,
मुझसे लिपटी ये हमेशा , मेरी परछांई है !
सोया हूँ थक के ग़र और , रो रो के कभी ,
ख़्वाबों में रात में दुनिया , नयी दिखाई है !
ग़र कभी टूटा है इन , धड़कनों का समां ,
अगले पल साँस ने इक , ज़िन्दगी चुराई है !
ग़र जो स्याह रात हो , अमावस की कभी ,
ख़ुद ही सुबह मेरी सूरज की , हँसी लाई है !
रवि ; दिल्ली : ३ फ़रवरी २०१३
हरियाली से बहुत दूर
दूर चट्टानों के पास
पत्थरों के बीच
बिन पत्तियों का
वो सूखा पेड़
कुछ कह रहा है …
शायद अपनी आपबीती !
कभी उस पर भी
फूल थे
पत्तियाँ थीं
हवा का
वो ठंडा कोमल झोंका
उसके अँग अँग में
उन्माद भर देता था !
फिर
अचानक एक दिन
एक तूफ़ान ने
उसे अँशत: उखाड़ फेंका ,
और धीरे धीरे
उसकी पत्तियाँ और फूल
सूखकर झड़ गये
और
वो रह गया
एक ढाँचा मात्र !
तभी से –
उसे प्रतीक्षा है
हवा के ठँंडे कोमल झोंके की नहीं
बल्कि
एक नये तूफ़ान की …
जो उसे
पूर्णत: उखाड़ फेंके
क्योंकि
वो अब जीवन (?) नहीं चाहता !
लेकिन अब
दूर कहीं तक –
तूफ़ान की कोई उम्मीद नहीं !
वो
अभी भी खड़ा है
प्रतीक्षा रत
दूर पत्थरों के बीच
अकेला , तनहा
एक सूखा पेड़ !!
रवि ; रुड़की : नवम्बर १९८१
मरुथल
त्रृष्णा
छाया
प्यास !
जीवन
प्रेम
स्वप्न
प्रयास !!
रवि ; दिल्ली : १ फ़रवरी २०१३
आज मैंने सोचा ये , मुझे करनी मनमानी है ,
ज़िन्दगी बनाने की , फिर आज मैंने ठानी है !
नयी मिट्टी से ख़ुद को , नया मुझे गढ़ना है ,
जीवन के आँगन को ,ख़ुशियों से जड़ना है !
ख़ुद को मुझे ख़ुद के , सीने से लगाना है ,
अब ना मुझे कभी फिर ,आँसू को बहाना है !
शुक्र है ख़ुदा का , मुझे मिट्टी से बनाया है ,
कर पाऊँ नया ख़ुद को ,ये राग सुनाया है !
ख़ुद में हूँ मैं नदिया , ये बात अब जानी है ,
मरुथल से बनी झरना, जीवन की कहानी है !!
रवि ; दिल्ली : ३० जनवरी २०१३
नज़रों में छुपाये फिरते हो ,
सीने से लगाये फिरते हो ,
उन भूली बिखरी यादों को ,
क्यूँ दिल में बसाये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये ़़…..
कितने हैं सावन बीते मगर ,
फिर भी बूँदों का नाम नहीं ,
जानकर इस बात को भी ,
क्यूँ ख़्वाब सजाये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये …..
क्यूँ याद रहें वो बातें उन्हे ,
जो उनके दिल की बात नहीं ,
उन एकतरफ़ा बीती बातों का ,
क्यूँ बोझ उठाये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये ……..
तुम्हे अपना जिसने कहा नहीं ,
दर्द बिरह का सहा नहीं ,
एक ऐसे बेगाने हमदम को ,
क्यूँ अपना बताये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये ……
है भूलना बेहतर टूटा कल ,
वो दर्द तुम्हारा बीता पल ,
अपनी आँखों के आँसू तुम ,
क्यूँ बेकार बहाये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये …….
देख रहे सब तुमको यहाँ ,
पर नज़र तुम्हारी सूनी है ,
उठ जाओ फिर मुस्काओ तुम ,
क्यूँ मातम मनाये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये …..
चलो दूर अभी जाना है ,
तुमको तो सबको हँसाना है ,
छोड़ो उन अाधे सपनों को ,
क्यूँ ख़ुद को सताये फिरते हो !
नज़रों में छुपाये …….
रवि ; दिल्ली : २८ जनवरी २०१३
आज तुम हमको भुलाये बैठे हो ,
दिल का अफ़साना बनाये बैठे हो ,
जिन आँखों को चूमा था हमने ,
आज तुम उनको रूलाये बैठे हो !
आज तुम हमको भुलाये बैठे हो !
वक़्त की बाज़ी लगाये बैठे हो ,
रूह को अपनी सताये बैठे हो ,
खोके हसीं लम्हों की हँसी को ,
ख़ुद को दीवाना बनाये बैठे हो !
आज तुम हमको भुलाये बैठे हो !
नज़र को अपनी लुटाये बैठे हो ,
ज़मीर से अपने क़तराये बैठे हो ,
कैसे ढूंढेगा सुकूं तुम्हें दुनिया में ,
ख़ुद अपने को मिटाये बैठे हो !
आज तुम हमको भुलाये बैठे हो !!
रवि ; दिल्ली : २१ जनवरी २०१३
माँ कहती है
धनवान नहीं गुणवान बनो !
मर्यादा का मान करो
स्व-सामर्थ्य का ध्यान धरो
जितनी चादर उतने पैर
स्वयं में प्रतिमान बनो !
धनवान नहीं गुणवान बनो !
निष्काम भाव स्वभाव करो
बातों में सदभाव भरो
भक्ति भरा उन्मुक्त भाव
प्रभुत्व का गुणगान बनो !
धनवान नहीं गुणवान बनो !
मुखोचित बस बात करो
अन्यत्र ना समवाद करो
गुण देखो उनको सीखो
गुणों का स्वाभिमान बनो !
धनवान नहीं गुणवान बनो !
ना स्वयंता ध्यान करो
द्विजस्वप्न का मान धरो
करो सिंचाई अपना जान
उनका तुम सम्मान बनो !
धनवान नहीं गुणवान बनो !
गुरू गोविन्द निर्मल दोहा
ना केवल ध्यान धरो
बिना गुरू मुक्ति असंभव
गुरू स्रद्धा सम्मान बनो !
धनवान नहीं गुणवान बनो !
धन नहीं बनाता धनवान
दानी बन धनवान बनो
परिभाषा के चरितार्थ हेतु
स्वयं ही परोपकारवान बनो !
धनवान नहीं गुणवान बनो !
माँ कहती है
धनवान नहीं गुणवान बनो !
रवि ; दिल्ली : १७ जनवरी २०१३
तेरी साँसों की धड़कन, मुझे ख़ूब सुनाई देती है ,
तेरी सूरत आँखों में , मुझे सबकी दिखाई देती है !
रवि ; दिल्ली : १७ जनवरी २०१३
मैं उनके सामने ही , यूँ वक़्त में गुज़र गया ;
तो कभी उनकी आँखों में , यूँ ही ठहर गया ;
ना वो बोले ना मैं बोला, ज़िन्दगी चलती रही ;
वो लम्हा पास होकर भी,कहने से मुक़र गया !
रवि ; दिल्ली : ११ जनवरी २०१३
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