सिलसिला !!
ख़ुद को रोको, ना ,इन्तज़ार करो ,
बाहों में भरके मुझे , इक़रार करो ।
प्यार की हमने , हद की थी मुक़र्रर ,
प्यार की हद को , आज पार करो ।
देखे हैं ख़्वाब में , आग़ोश के मंज़र ,
मेरी चाहत से , ना , इन्कार करो ।
रोक लो साँस को , बहने दो बदन ,
पिघलेगी शम्मा भी , ऐतबार करो ।
मुझको चाहो तुम , मुझे प्यार करो ,
सिलसिला रोज़ ये , हर बार करो ।
रवि ; ५ अप्रैल २०१३
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