…. नयन !!
कर डाले दिल के टुकड़े हज़ार मेरे ,
तेरे नयन की धार एक कटार हो गयी !
सोचते थे अब तक तनहाई में तुझे ,
तू ख़्वाब में भी आज से शुमार हो गयी !
रवि ; दिल्ली : ३० सितम्बर २०१३
कर डाले दिल के टुकड़े हज़ार मेरे ,
तेरे नयन की धार एक कटार हो गयी !
सोचते थे अब तक तनहाई में तुझे ,
तू ख़्वाब में भी आज से शुमार हो गयी !
रवि ; दिल्ली : ३० सितम्बर २०१३
तेरे छूने से , मदहोशी मुझको , आई है ,
बड़े बरसों में , बिजली घटा में , छाई है !
मैं तो प्यासा था , सहरा में यूँ , ज़माने से ,
तूने होठों से अपने , प्यास ये , बुझाई है !
यूँ तो देखी हैं , गुलशन में कली , और यहाँ ,
पर एक तू ही है , जो दिल में यूँ , समाई है !
तेरी यादों में , सोया नहीं था मैं , बरसों यहाँ ,
नींद तेरी साँसों की , महक ने आज , उड़ाई है !
तुझको आग़ोश में , लेते ही यूँ , महसूस किया ,
कि तुझको छू के बदन में , आग खुद , लगाई है !
रवि ; दिल्ली : २९ सितम्बर २०१३
तेरे छूने से , मदहोशी मुझको , आई है ,
बड़े बरसों में , बिजली घटा में , छाई है !
रवि ; दिल्ली : २८ सितम्बर २०१३
मैं चला जब उनके घर से , तो उनके लिये जहान माँगा ,
पलट कर उन्होने मुझसे बस , थोड़ा और सामान माँगा !
हो चली जब उम्र से गहरी , हाथों की लकीरें मेरी ,
छुड़ाकर हाथ अपना मुझसे , मेरा तब गिरहबान माँगा !
सीने पे दी थी जो चोट मेरे , रक़ीबों ने उनकी ख़ातिर कभी ,
इशारे से हाथों के उन्होंने , वापस वो उसका निशान माँगा !
क़समें दिलाईं सारी वफ़ा की , निभाया जिन्हे था बरसों मैने ,
मुस्कुरा के उस दिन उन्होंने , बस एक और इम्तिहान माँगा !
भूल जाऊँ यादों को अपनी , हमने गुज़ारी थीं जो कभी ,
और उन्हें भी याद ना आऊँ , ये आख़िरी अहसान माँगा !
रवि : दिल्ली ; २७ सितम्बर २०१३
मैं चला जब उनके घर से , तो उनके लिये जहान माँगा ,
पलट कर उन्होने मुझसे बस , थोड़ा और सामान माँगा !
रवि : दिल्ली ; २६ सितम्बर २०१३
तेरी नज़रों से घायल हूँ , अब तू ही दवा दे दे ,
ज़ुल्फ़ों की मुझे अपनी , तू थोड़ी सा हवा दे दे !
तुझे ख़्वाबों में देखा है , बरसों से यहाँ मैने ,
मुझे ख़्वाबों में आने की , तू अब मुझको हाँ दे दे !
मैं परवाना हूँ आशिक़ हूँ , तेरे जलवों का ज़माने से ,
रहम कर ज़िन्दगी पे अब , तू थोड़ी सी शमा दे दे !
सितारे आँखों में तेरी , सजा पलकों पे सूरज है ,
परिन्दा हूँ मैं हसरत का , तू मुझको आसमां दे दे !
मैं तेरा ही रहूँ मर के , मेरी बस ये ख़्वाहिश है ,
अगले पल ही मर जाऊँ ग़र , तू मुझको रज़ा दे दे !
रवि ; दिल्ली : २४ सितम्बर २०१३
आँसू की ये बूँदें , अपनी शख़्सियत बदलती हैं ,
ओस तो कभी बरसात की , बूँदों सी ढलती हैं !
रवि ; दिल्ली : २२ सितम्बर २०१३
आँसू जो ये बहते हैं ,
यादों का किनारा है !
आहें जो निकलती हैं ,
ज़ख़्मों का सहारा है !
जो मुड़ के पीछे देखूँ ,
खुद वक़्त बेचारा है !
ना प्यार मिले जिसको ,
क़िस्मत का मारा है !
ग़र साथ हों तक़दीरें ,
हर ख़्वाब सितारा है !
रवि ; दिल्ली : २२ सितम्बर २०१३
रगों का ख़ून बहाकर भी , ग़र इक़रार होता है ,
उसको तब भी ना कोई , मेरा ऐतबार होता है !
कभी जब तोड़ा था मैने , उस बुनियाद का पत्थर ,
उठना दीवार का तब से , वहाँ दुश्वार होता है !
जो आँखों से निकले , सज़ा के आँसू थे उस दिन ,
है बीता वक़्त पर ये , दर्द बेशुमार होता है !
बुलाना वक़्त को लौटे , नहीं आता मुझे शायद ,
पुकारूँ कितना भी चाहे , पर इन्कार होता है !
जाऊँगा दुनिया से अब तो , इस इल्ज़ाम को लेकर ,
मरना पर झूठ की ख़ातिर , तो बेकार होता है !
रवि ; दिल्ली : २१ सितम्बर २०१३
रगों का ख़ून बहाकर भी , ग़र इक़रार होता है ,
उसको तब भी ना कोई , मेरा ऐतबार होता है !
रवि ; दिल्ली : २० सितम्बर २०१३
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