शुक्र !
आज मैंने सोचा ये , मुझे करनी मनमानी है ,
ज़िन्दगी बनाने की , फिर आज मैंने ठानी है !
नयी मिट्टी से ख़ुद को , नया मुझे गढ़ना है ,
जीवन के आँगन को ,ख़ुशियों से जड़ना है !
ख़ुद को मुझे ख़ुद के , सीने से लगाना है ,
अब ना मुझे कभी फिर ,आँसू को बहाना है !
शुक्र है ख़ुदा का , मुझे मिट्टी से बनाया है ,
कर पाऊँ नया ख़ुद को ,ये राग सुनाया है !
ख़ुद में हूँ मैं नदिया , ये बात अब जानी है ,
मरुथल से बनी झरना, जीवन की कहानी है !!
रवि ; दिल्ली : ३० जनवरी २०१३
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