मक़सद …. !!
मज़हबों का चलो आज से , कारोबार घटाया जाये ,
इन्सानियत को ज़िन्दगी का , मक़सद बनाया जाये !
भगवान और खुदा में , मिटाया ना फ़र्क़ हमने ,
इन्सानों के दर्मियाँ ही , अब फ़र्क़ मिटाया जाये !
घंटियों और अज़ानों से , ना बेहतर हुईं हैं नस्लें ,
इन्सानियत की दुआ में , अब सर झुकाया जाये !
मज़हब के अगवाइयों ने , मिटाये हैं नूर कितने ,
अब तो दिया अमन का , हर घर जलाया जाये !
है आँखों में ख़ौफ़ कब से , मासूमियत के बदले ,
बचपन के होंठों पे फिर , हँसी को खिलाया जाये !
बंजर से बन गये हैं , इन काँटों से ज़हन सभी के ,
मुहब्बत का हल चला के , फिर गुल खिलाया जाये !