मिली नज़र जो आपसे , ना दूर हो सके ,
ये बात और है कि ना , मशहूर हो सके ।

थी बीमारी आपको , भुलाने की रिश्ते ,
इसीलिये आँखों का हम ना , नूर हो सके ।

मेरी नज़र में आप थीं , पर आप में कोई और,
हम आपकी नज़र का ना , सुरूर हो सके ।

आपकी आँखों और , बातों में थी जफ़ा ,
मेरे ख़्वाब फिर भी ना , मजबूर हो सके ।

जीते हैं मोड़ ज़िन्दगी के , हमने सब यहाँ ,
पर ना इश्क़ के मैदान के , हुज़ूर हो सके ।

रवि ; दिल्ली : १ अप्रैल २०१३