हम तो तेरी निगाहों में बस बहते रहे ,
ज़ुल्फ़ों का तेरी ज़ुल्म भी हम सहते रहे ,
क़बूल करेगी कभी सामने से या नहीं तू ,
इसलिये दूर ही से अपना तुझे कहते रहे !

रवि ; दिल्ली : ३ जनवरी २०१३