ज़िन्दगी October 21 2012| 0 comments | Category : Poetry , Shayari चाहूं कितना भी संभालना , फिर भी ना संभलती है , ज़िन्दगी हमेशा बदलती है , हर शाम यूं ही ढलती है ! रवि ; दिल्ली : अगस्त २०१२