शून्य !!
हवा का एक मंद झोंका
अभी अभी
मेरी नींद को सुला गया है
सपनों के परदे उठा गया है
और सपनों में –
एक छुपा छुपी के खेल में
तुम कहीं छुप गए हो
और अचानक
हवा थम गयी है
चारों तरफ अँधेरा है
और
एक भयंकर शून्य !
लेकिन
उस शून्य में भी
मैं
तुम्हे पुकार रहा हूँ
जबकि
मुझे भी
ये आभास है
कि
स्वर गमन को माध्यम चाहिए
लेकिन फिर भी
मुझे विश्वास है
कि
शून्य में भी
कभी ना कभी
मेरा स्वर
तुम तक पहुंचेगा
और तुम लौटोगे !
मैं
अभी भी
तुम्हे पुकार रहा हूँ
प्रतिछन
तुम्हारे लौटने का विश्वास लिए !!
रवि ; रूडकी १९८३