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सपनों में घूमता
अचानक एक रात
मैं पहुंचा
एक अनजाने देश में –
सफ़ेद बर्फ़ के पहाड़
पहाड़ों के बीच
मस्त झूमती नदियाँ
दूर तक रंग बिरंगे
फूलों की कतारें
हरे भरे पेड़ों पर
खूब चहकते पक्षी
सभी कुछ सुन्दर था
बहुत सुन्दर !
और वहीँ
दूर फूलों के बीच
एक प्यारा सा बच्चा –
मखमली धूप में चमकते
उसके सुनहरे बाल
खूबसूरत छोटे हाथ
उसके क़ीमती कपड़े
उसकी किलकारियां और
प्यार से भरी वो आँखें
ये बताती थीं
वो ख़ुश है बहुत ख़ुश !
लेकिन तभी
किलकारियों के बीच
सिसकियों की वो आवाज़
मेरा सपना टूटा ….
सामने यथार्थ खड़ा था –
एक भूखा नंगा बच्चा
पेट कहीं
पीठ तक धंसा हुआ
आँखों में
खारे पानी की बूंदे लिए
वो निरीह सा
मुझे घूर रहा था !
शायद …
उसकी आँखों से ढलकते आंसू
ये पूछ रहे थे –
क्या सपने सच होते हैं ??

रवि ; रुड़की : अगस्त १९८१