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गर्मियों की तपती दोपहर
अकाल की चपेट में एक गाँव
और
पानी की एक एक बूँद को तरसते लोग !
लेकिन फिर भी
कुछ लोगों के घरों में
पानी से भरे कुछ बर्तन
शायद
बुरे वक़्त के लिए रखे हैं !
ऐसे में
प्यास से तड़पती
बुढ़िया की ज़बान पर
एक ही नाम है – पानी !
और उसका बूढ़ा
हाथ में कटोरा लिए
सारे शहर में
घूम चुका है
भीख मांगता
दो बूँद पानी की !
लेकिन किसी ने भी
उसे पानी ना दिया
प्यास बुझाने के लिए !
और जब तक
हताश बूढ़ा लौटा
ख़ाली कटोरा लिए
तब तक –
प्यास से तड़प कर
बुढ़िया ने दम तोड़ दिया !
बूढ़े ने लाश को
सड़क पर डाल दिया
और
लोगों ने आपने बटुओं से
चन्द सिक्के फ़ेंक दिये
बुढ़िया की लाश पर !
और बूढ़े ने
कफ़न खरीदकर
दफ़ना दिया अपनी बुढ़िया को !
और
उस बदनसीब लाश के
वहां से हटते ही
लोगों ने उस जगह को
ढेरों पानी से
रगड़ रगड़ कर धो डाला !!

रवि ; रुड़की : जुलाई १९८१