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ज़िन्दगी से मेरी कल मुलाक़ात है ,
सवालाें में उलझी मेरी रात है !

लहू बह रहा लाल सबमें मगर ,
फिर क्यूँ बनाई अलग जात है !

यक़ीं इंसा कैसे किसी का करे ,
हरेक बैठा लगाये यहाँ घात है !

कितना भी आगे कोई निकले मगर,
वक्त क्यूँ सबको देता यहाँ मात है !

ग़र इश्क़ रुसवा हुआ हो कभी ,
क्यूँ उम्र अश्क़ों की बरसात है !

क्यूँ दिलों के पैमाने छोटे हुए ,
कहते हैं चीज़ों की इफ़रात है !

ज़िन्दगी से मेरी कल मुलाक़ात है ,
सवालाें में उलझी मेरी रात है !!

रवि ; दिल्ली : १६ जुलाई २०१३