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कह दो लहरों से , छू के ना वो , चले जाया करें ,
कभी कुछ पल , मेरे पहलू में भी , मुस्काया करें !

मैं तो साहिल हूँ , देखूँ राह मैं , मुसाफ़िर की ,
वो भी तो यूँ , किसी और को , अपनाया करें !

उनको छूती है , हर हवा जो , गुज़रती है यहाँ ,
यूँ तो सबको वो ना , ये हुस्न , दिखालाया करें !

उनकी फ़ितरत है , चुहलबाजी , मेरी इन्तज़ारी है ,
फिर भी इन्तज़ार , उम्र भर ना , करवाया करें !

उनकी क़िस्मत में , लिखा है , ख़ुदा ने मुझको ख़ुद ,
उनसे कह दो , ना मेरे सामने , इतराया करें !

रवि ; दिल्ली : १ नवम्बर २०१३