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मां ,
मैं खुद को कब जगाऊंगा,
मैं होश में कब आऊंगा !!

प्रसव की तेरी उस वेदना को ,
ह्रदय की तेरी उस चेतना को ,
तेरी साँसों की समवेदना को ,
कब मां मैं भी जान पाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

जब मां हुआ था जन्म मेरा ,
और देखा मैंने प्रथम सवेरा ,
प्रसव का अथक प्रयत्न तेरा ,
वोह क़र्ज़ मैं कब चुकाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तूने कहा मैं बाँटूं खिलौने ,
पर रख लिए सारे वो मैंने ,
पैसा घर और अपनी कारें ,
कब सबसे मैं बाँट पाउँगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तुने कहा हाथ का मैल पैसा ,
जैसे कमाओ रंग बने वैसा ,
जहाँ ना हो गिरेबाँ ये गन्दा ,
कब मैं ऐसा पैसा कमाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तूने कहा रखूँ मैं भाव समर्पण ,
पर मैंने किया सभी स्वअर्पण ,
स्व रूप इस संसार में सबको ,
क्या मैं कभी भी देख पाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तुने कहा सबके बाँट तू दुःख ,
कर सभी कुछ देने उन्हें सुख ,
देख खबरों में रोज़ लोग बेघर ,
कब मैं कुछ करना चाहूँगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

टूटे टीन छप्पर में बरसातें ,
भूखे बच्चों की भूखी बातें ,
बूढों की बिखरी सूखी साँसे ,
कब मैं उनको सुन पाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तुने कहा कर मान कर्म का ,
पर मैं करूँ सम्मान धर्म का ,
स्वजीवन में कर्म मूल्य को ,
कब सर्वोपरि मैं रख पाउँगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तुने कहा था बस इश्वर एक ,
पर मैं देखता उनको अनेक ,
भगवान् इशु और खुदा को ,
कब मैं एक ही देख पाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तुने कहा कुछ नहीं असंभव ,
पर मुझे नहीं दिखा ये संभव ,
जीवन के इस रात्रि प्रहर में ,
कब मैं आशादीप जलाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तुने कहा मुझे होश में आ ,
पर मैं हमेशा बेहोश हूँ मां ,
सोते बेहोश जागे मदहोश ,
मैं कब ये पलकें उठाऊंगा !

मैं होश में कब आऊंगा !

तेरा कुछ भी नहीं मैं हूँ मानता ,
तेरे रस्ते से दूर हूँ मैं ये जानता ,
खुद को मानूंगा होश में मैं तब ,
तेरी सीखों को जब जी पाऊंगा !

मां ,
मैं खुद को कब जगाऊंगा,
मैं होश में कब आऊंगा !!

रवि , ६ फ़रवरी २०१०