नित्य !
नित्य
होता हूँ पवित्र
मैं
अपने अस्तित्व में
आेस की बूँद सा
रात्रि के
अंन्तिम पहर की
शांत
सौम्य
अनकही
अनछुई
आकाश से आती
प्रेम को बहाती
धरा को नहलाती
उषा का मान
प्रभात का सम्मान
ईष्ट देव सी
सत्य मेव सी
पवन में आच्छादित समान
साहस का अदम्य प्रमाण
किन्तु
है कोमल जल
सूर्य संदेश में
है होती ओझल
परन्तु
अविचल दीक्षा
तम की प्रतीक्षा
ना कोई समीक्षा
आती है पुनः
हर बार
और देती है
रात्रि पहर का
स्नेहागान
पवित्र स्नान
नित्य !!
रवि ; सिंगापुर : २९ अक्टूबर २०१२