अपनी तनहाइयों पर हैरान होता हूं मैं ,
अध चुके ख़्वाबों के बीच खोता हूं मैं ,
पुकारूं किसको और कब तक पुकारूं ,
थककर ख़ुद की आवाज़ से सोता हूं मैं !

रवि ; दिल्ली : जुलाई २०१२