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हाँ ! देखी है वो भी एक ज़िन्दगी !

प्यार की ज़फाओं पर आंसू बहाती एक ज़िन्दगी ,
रोती , सुबकती और सिसकती हुई एक ज़िन्दगी ,
हाँ ! ज़िन्दगी ही तो थी और कहूँ क्या मैं उसे ,
वक़्त में तिल तिल कर मरती हुई एक ज़िन्दगी !!

हाँ ! देखी है वो भी एक ज़िन्दगी !

रवि ; रुड़की : मार्च १९८०