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जिंदा है आदमी ,
क्योंकि जिन्दा हैं हसरतें !

ना मरती हैं ना चुकती हैं ,
हमेशा कुछ बहकती हैं ,
ना दिखती हैं ना सुनती हैं,
हमेशा कुछ ये कहती हैं ,

ना रुकती हैं न थकती हैं ,
हमेशा बस संवरती हैं ,
ना जगती हैं ना सोती हैं ,
हमेशा पास होती हैं ,

कभी खामोश पलकों में ,
कभी दिल में उतरती हैं ,
कभी आंसू की सूरत में ,
आँखों से छलकती हैं ,

कभी थिरकन ये होठों की ,
बनकर के निकलती हैं ,
कभी सिकुड़न हैं माथे की ,
बनकर फिर संभलती है ,

कभी मायूस रातों के .
ख्वाबों में ये ढलती हैं ,
कभी ख्वाबों से बाहर हो ,
हमारे साथ चलती हैं ,

जो हिम्मत हार जाती हैं ,
तो सब पर गुजरती हैं ,
तड़पते साँस को ये फिर ,
सचमुच में निगलती है ,

ये अद्भुत बात है लेकिन,
फिर से वो खनकती हैं,
भुलाकर भूत की बातें ,
नए सपनों में ढलती हैं ,

हसरत के हैं सब आशिक,
पर फिर क्यूँ भुलाते हैं ,
गर, वो भूलना चाहे ,
तो इंसा मर ही जाते हैं !

जिंदा है आदमी ,
क्योंकि जिन्दा हैं हसरतें !!

– रवि , २1 अगस्त २००९ – सेंट पीटरबर्ग