हर घड़ी … !!
हर घड़ी हर लम्हा धड़कता ये दिल
चाहता पाना न जाने कौन सी मंज़िल
हर एक पल साँसों की कड़ी जारी है
फिर अगली और अगली की बारी है
उम्र सबकी सारी यूँ ही गुज़रती है
उम्मीद की रौशनी आँखों में भरती है
फिर चाहे कभी कोई लम्हा टूटता हो
या उम्मीद का दामन यकायक छूटता हो
ख्वाब साँसों में फिर भी महकते हैं
चाहतों के साहिल फिर भी चहकते हैं
बस उन्हें छूने की उम्मीद खोती है
कभी खुली आँख बस यूँ ही सोती है
हर पल वक्त रूकने इन्तज़ार रहता है
क्यूँ ख़ून रगों में रूक रूक के बहता है
कश्मकश यहाँ हर लम्हा दिखाता है
सबक़ ज़िन्दगी के हर दिन सिखाता है
कभी थमेगा सब कुछ ये सब जानते हैं
न रहेगा हमेशा जहाँ ये सभी मानते हैं
जिस्म से निकलेगी रूह आगे की राह में
क्यूँ मरती फिर ज़िन्दगी सपनों की चाह में
सवाल रोज़ बेहिसाब कितने ही हुज़ूर
कुछ गुमनाम जिये कुछ मरे यहाँ मशहूर
हँसी होंठों पे हो या तन्हाई का ग़ुरूर
तबियत मरने की हो या चढ़ा हो सुरूर
दिल धड़कता है फिर भी हर पल ज़रूर
चूँकि हो गया है शायद आदत से मजबूर !!