सत्य !!
सत्य जो होता मृत्युहीन ,
जीवन में प्रतिपल मरता क्यूँ ?
असत्य लिए जीवन वरदान ,
वाणी में सबकी भरता क्यूँ ?
सत्य जो होता मृत्युहीन ….
सत्य जो होता सर्व सरल ,
कठिन संवाद से डरता क्यूँ ?
देख असत्य की आतुरता ,
ये स्वाभिमान को हरता क्यूँ ?
सत्य जो होता मृत्युहीन ….
शाश्वत सरल है सत्य सदा ,
पर नहीं परिभाषित होता क्यूँ ?
ये झूठ की चादर ओढ़ ओढ़ ,
हर व्यक्ति यहाँ पर सोता क्यूँ ?
सत्य जो होता मृत्युहीन ….
कहने करने का भेद लिए ,
आडम्बर मन को ढोता क्यूँ ?
वध सत्य का स्वयं करके ,
फिर नेत्र अश्रु में खोता क्यूँ ?
सत्य जो होता मृत्युहीन ….
रवि ; गुड़गांव : १३ फ़रवरी 2010 .