मोड़ !
तुम उदास मत होओ
मैं तुम्हारी
ज़िन्दगी से चला जाऊँगा
एक गुजरे वक़्त की मानिंद
जो कभी नहीं लौटता !
वो तमाम यादें भी
आपने साथ ले जाऊँगा
जो हमेशा तुम्हारे साथ हैं !
दर्द भरी ख़ामोशी भूलकर
मैं मुस्कराऊंगा
ग़म के अफ़साने भूलकर
मैं मीठे गीत गुनगुनाऊंगा
अपनी तन्हाइयों को मैं
अपना हमकदम बनाऊंगा
और भूलकर भी
मैं तुम्हे याद नहीं आऊंगा !
लेकिन जब कभी –
तुम्हे ये अहसास हो
की तुम अकेली हो
तुम्हे किसी दुसरे की
तन्हाई का साथ चाहिए
तब उस मोड़ पर –
तुम देर नहीं करना
मुझे धीरे से पुकार लेना
मैं हमेशा –
कहीं तुम्हारे साथ हूँ !!
रवि ; नवम्बर १९८१