मेरे महबूब !
मेरे महबूब की तनहाई में मैं रहता हूँ ,
उनके ख़्वाबों में ख़यालों की तरह बहता हूँ ।
कैसे कह दूँ कि भुला दूँगा उन्हे दुनिया में ,
मैं तो उनका रहूँ मर के भी दुआ कहता हूँ ।
वो मुझे भूल भी जायें तो शिकायत ना मुझे ,
मैं था उनका कभी ये सोच के ख़ुश रहता हूँ ।
उनको होता नहीं अहसास तड़प का मेरी ,
दर्द को उनके मैं अपना समझ के सहता हूँ ।
जब कभी बहकी हवा देती है मस्ती का समां ,
खशबू निकली है बदन छू के उनकी कहता हूँ ।
रवि ; दिल्ली : २० जून २०१३