ज़िन्दगी को , अपनी तरह , जीने का गुमान है ,
शायद यही , और सिर्फ यही , मेरी पहचान है !

यूँ तो जी , सकता हूँ मैं भी , लोगों की तरह ,
पर उन्हें , मर मर के जीते , देख मन हैरान है !

वो कहते हैं , ये मैं नहीं , बस मेरा सुरूर है ,
पर मैं जानता हूँ , खुदा मुझ पे , मेहरबान है !

कैसे कह दूं कि मुझे , जिस्म की , परवाह नहीं कभी ,
जब मैं जानता हूँ , दिल मेरा इसका , मेहमान है !

क्यूँ गुज़रे वक़्त को , आगे से , जोड़ते हैं हम ,
सदियों का यहाँ बिखरा , हर पल में , सामान है !

पल की अगले ना ख़बर , पर दूर , सोचते हैं हम ,
ख़ुद पे इतना , क्यूँ हमें , इत्मीनान है !

क्यूँ गुरूर , होता है उन्हें , ऊँचे मुकाम पर ,
पतंग की उंचाई , तो हवा की , मेहरबान है !

फ़र्क दिल और जान का , जो , कर सके यहाँ ,
वो ही बस , पत्थर नहीं , एक इंसान है !

ज़िन्दगी को , अपनी तरह ,जीने का गुमान है ,
शायद यही , और सिर्फ यही , मेरी पहचान है !

रवि ; अहमदाबाद : ९ जुलाई २०११

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Zindagi ko apni tarah jeene ka ek gumaan hai ,
Shayad yehi aur sirf yehi meri pehchan hai !

Yun to jee sakta hoon main bhi logon ki tarah
Par unhe mar mar ke jeete dekh man hairaan hai !

Wo kahte hain ye main nahin bas mera surur hai
Par main jaanta hun khuda mujh par meharbaan hai !

Kaise kah doon ki mujhe jism hi parwaah nahin hai
Jab main jaanta hoon dil mera iska mehmaan hai !

Guzre hue waqt ko aage se kyon jodte hain hum
Jab ki har pal mein bikhra sadiyon ka saman hai !

Ek ek pal ki aas nahin par door sochte hain hum
Kyon hamein apne aap par itna itmeenan hai !

Kyun gooroor hai unhe apne unche mukaam par
Jabki patang ki unchaai hawa ke meharbaan hai !

Dil aur jaan mein jo kar sake fark hamesha hee
Bas wo hi nahin patthar balki ek insaan hai !

Ravi Sharma ; Ahmedabad : 9 July 2011.