मुसाफ़िर !!
मुसाफ़िर मैं अदना सा , और रास्ते कई हैं ,
हर रास्ते से लिपटे , यहाँ वास्ते कई हैं ,
चलूंं अब किधर मैं , मुश्किल है ये समझना ,
पर इन्सान को हमेशा , खुदके ही साथ चलना ,
खो जाऊँ अब अगर , क्यूँ मैं डरता हूँ ,
बस अपने ही वास्ते , क्यूँ मैं मरता हूँ ,
है रात बहुत बीती , ये जवाब मुझे चाहिये ,
ख़ुद के लिये चलूँ , या सवाब मुझे चाहिये ,
मुश्किल है ये बात , और आसां भी यही है ,
है सबको जो चलाता , वो तो यहीं कहीं है ,
फिर सोच में क्यूँ डूबा , ले रास्ता पुराना ,
चल चुके जो इस रस्ते , बोलें बड़ा सुहाना ,
ठाना अब ये मैंने , करना मुझे यही है ,
सब रास्ते हैं मेरे , डरना मुझे नहीं है ,
चलना है मुझे अब , बस एक ख़ुदा के वास्ते ,
कहते हैं ग़ुल खिलेंगे , फिर मेरे हरेक रास्ते !!
रवि ; दिल्ली : २७ मार्च २०१३