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मैं क्या कहूं और क्यूँ कहूँ ,

क्या नई बात हूबहू कहूं ,

क्या सही मैं गलत कहूँ ,

फिर गलत को सही कहूँ,

बात की फितरत है ऐसी,

बढ़ती है ये जितना कहूँ !

मैं क्या कहूं और क्यूँ कहूँ !!

लगता जो सच वैसा कहूं ,

या अच्छा लगे वैसा कहूं ,

या जो करे भला वैसा कहूं ,

अपलक रहता मैं सोचता ,

स्वयं,स्थिति या कल्याण ,

मैं किसके प्रति सच्चा रहूँ !

मैं क्या कहूं और क्यूँ कहूँ !!

गर कहता हूँ मैं सच्चाई ,

तो उसके प्रति बुरा बनूँ ,

जो कहूं उसकी प्रिय बात ,

तो अपने प्रति झूठा बनूँ ,

गर बात सर्वकल्याण की ,

तो चारोँ तरफ निंदा भरूँ !

मैं क्या कहूं और क्यूँ कहूँ !!

रवि ; गुड़गांव : १५ जनवरी २०१०